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जव चरित्र ।
धात जे सुतने कहा ॥ ५ ॥ इकदिन तिया सत्र ले जार, षाड़ीमे सूती निरधार । तवते सुसरे देखा सह, सूती जार सङ्ग ले बह ॥ १० ॥ सुसर देख निमावस नार, लियो खोलि नेपुर निरधार । पग नेपुर सुसराले चला, उठी त्रिया जानो सव कला ११॥ सुसर कहेगा सूतसुं जाय, मेतो पहिले कहुं समुकाय । परपुरुष को विदा कर दिया, सूती जाय जिहां निज पिया ॥ १५॥ घड़ी इकमे पिठ को जगाय, कहने लागी पात बनाय । पग नेपुर सुसरा ले गया, अनघट काम बाज ए नया ॥ १३ प्रास कहेगा तुमसुं जवें. दोस मुसीको देगा तवें खवरदार तुम रहियो प्रात, मत मानो जो नापे तात ॥ १४ ॥ प्रात जया दिनकर परकाश, सुसर श्राय बेटाके पास । सुनो पुत्र तुम बहुकी बात जार सङ्गाले सूती रात ॥१५॥ पग नेपुर मै खोली लिया, तुके दिखापन को मै किया। कहे पुत्र बूढा सुन बात, तेरी अकल कहां गई तात ॥ १६ ॥ क्या कम देता तें श्राज, मेरी बहू सती सिर ताज । जव तें नेपुर लिया उतार, तब मै सुताचा निरधार ॥१७॥ धिक्कार तुके है श्राया तिहां, पेटा
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