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जम्मु चरित्र ।
धीरजयन्त, आगे श्रोता सुन बिरतन्त ॥ २०० दोहा ) श्रव तीजी तिय इम कहे, पदम सेना जु नाम । स्वामी सञ्जम मति धरो, सञ्जम मुक्कड़ का ॥ १ ॥ जो योगे पडतावगे, नृपकी राणी जम । तेनो पुख पायो घणो, तुम पावोगे तेम ॥ २॥ तव जम्बू स्वामी कहें, ललना कहिये बात गणी किम सुख पाश्या, ते तुम कहो विख्यात ३॥ कहें पदम सेना तव, स्वामी सन चितलाय राणीकी में कहुँ कथा, जे पुख पायो काय ॥ ४ कामिन पियसुं नापती, साच बचन हिय धार चेतनना सुध होयके, श्रोता सुनो विचार ॥ ५ चौपाइ ) राजगद्दी नगरी विस्तार, निहां बसे देवदत्त सुनार । तिनके दर्य बहुत है पास, घरमे एक पुत्र है तास ॥ ६॥ इक सुनारकी पुत्री थान कियो विवाह पुत्रको जान । स्त्री जरतार बहुत है प्यार, सुख बिलसे नित तेह सुनार ॥ ७॥ अन्य पुरुषसो खुवधी त्रिया, देखी सुसरे सुतकी प्रिया सुतसुं जाय हकीकत कही, तेरी त्रिया सती तो नही ॥ ७॥ पुत्र न माने एको बात, मेरी त्रिया सती विख्यात । तव ते बूढ़ा चुप हो रहा, सुनी
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