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जम्वु चरित्र ।
कहुं सवें, श्रोता सुन सुखदाय ॥ ४ ॥ ( चौपाई इक वनमे बांदर बांदरी, जुदा रहे नहि एकेघड़। स्त्री नरतार देत अति धरें, इकदिन बनमे फिरता फिरें ॥ ३५ ॥ तिहां इक अहमे निर्मल नीर बांदर बांदरी बैग तीर । करे बिचार बांदरा तिहां, स्नान करिये कुन्ड है जिहां ॥ १६ ॥ तद वृद उपर चढ़ियो धाय, दोनु प्रहमे कूदे जाय गिरत प्रमाने मानव जया, बन्दर रूप सबि मिट गया ॥ ॥ बन्दर कहे कूदिये फेर, देवत हुनें अवकी बेर । बांदरी कहे सुनो मुफ पीव, बहुत लोन नहि कीजें जीव ॥ ॥ आपन पशु तें मानव जया, एताहिमे सुख बहु थया।अव लालच मत करो सुजान, नहि मान्यो बांदर अज्ञान ॥ए अहमे फेर कूदियो जवें, बांदर रूप नया ते तवें बांदरी फिर नहि कूदी जिहां, नारी रूप रही ते तिहां ॥ ७० ॥ एते मे जित शत्रु राय, शिकार देत तिहां ते थाय । त्रिया बांदरी अद्भुत रूप ते देखी जित शत्रु नूप ॥ १॥ रूप देख नूप सङ्ग लिया घर आए पटराणी किया। इकदिन राजा राणी तिहां, बैठे जाय गौख है जिहां ॥ ५॥ उह बन्दर
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