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जम्बु चरित्र |
कलेवर खाता २ जवें, गजपेट ज पेठा तवें ॥ ६५ जु कोइ दिन पिछे गरमी जया, गजको कलेवर सूखी गया । धूप पड़ा सकुचाते द्वार, जितर काग रहे निरधार ॥ ६६ ॥ इक दिन मेह जया बिस्तार, नदी पूर आई तिनवार । दहे कलैवर गजका जवें. वह
या सागरमे तवें ॥ ६७ ॥ पानी की सरदी बहु थिया, तव उद द्वार मोकला जया । तत्रते काग निकला सही, चारतरफ देखे जल रही ॥ ६८ ॥ बैठनको जागा नहि कहीं, उड़ २ बैटे उहां फिरसहीं | कवा वांदी मुबा सदी, बायसके सम हमतो नही ॥ ६ ॥ तुम सरीर पर मुक नहि लोज, जो होवे अति सुन्दर सोभ । नहि मुवुं जव सागर मादि, चेतनता सुध शिवपद यांदि ॥ 3o दोदा) पदम श्री डूजी प्रिया, ते बोली सुन खाम दम भैसी स्त्री पायके, लोज करो शिव वाम ॥ ७१ पिन तुम बानर के तरे, पछतावोगे आप | लोन बहुत नहि किजिये, फिरके पश्चाताप ॥ ७२ ॥ जम्बू कहें कहो प्रिया, ते कुन बांदर होप | कैसे ते पाया, कथा कहो तुम सोय ॥ ७३ ॥ बनिता जम्बूको कहे, कथा सुनो चितलाय, बांदरकी में
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