________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जम्भु चरित्र । १५ हीका जिनियो दुत गति कर्म कि ॥ २० ॥ कर जम्बू प्रनवा सुनो कोन करें गति कर्म । थाप किया फल पाश्ये पाप पुन्य थारु धर्म ॥ २१ पृष्टान्त को गति कर्मको प्रचव सुनो चितलाय महेस्वर इस उत्री बसें पिता कह्मो समुझाय २१॥ मरती पेला पुत्रको पात कही जब तात मम सराप घावें अब जैसा करियो घात ॥ २३ इक असा मारी करी सराध कीजियो मुस। चिन्ता रमे पहुंचे सही वचन कहा मै तुस ॥ २४ ॥ (घोपार) थार्यध्यान से मुठ तात, हवा जैसा मुनियो पात । मात मरीने कुत्ती नइ, अपने घरमं कई न ग ॥२५॥ महेस्वर इसकी देनार भोग जोग सङ्गे जार । येस्स महेस्वर कियो कवायः भार पुरुषको मारयो आय ॥ १६ ॥ ते पुरुष की ज्याने मस्यो, उसही बीके मुत यो तस्यो । तात मात मिस करते प्यार, थायो भाइ पिताको वार १७ ॥ तेडिज नेपामारी करी, पुत्र गोद से नहाय वरी। माका जीव कूतरी जद, चावे हा पाका सह ॥ तिन घौसर बाहार के काज, भाए: शिक्षा एक सविरमा । विपरित बार देखिके जो
For Private and Personal Use Only