Book Title: Jain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Author(s): Mohan Chand
Publisher: Eastern Book Linkers

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Page 13
________________ ने इसका प्रकाशक । जैन वाङ्मय का जब तक जन सम्प्रदाय के सङ्कीर्ण कटघरे से निकलकर पूरी भारतीय परम्परा के सन्दर्भ में अध्ययन न होगा तब तक उस वाङ्मय के अनेक मूल्यवान् पक्ष अनुद्घाटित ही रह जायेंगे। इस दिशा में किये जाने वाले कुछ विरल प्रयत्नों में से एक प्रयत्न प्रस्तुत शोध ग्रन्थ है। इसलिये मैं इसका और इसके लेखक का अभिनन्दन करता हूं पोर यह कामना करता हूं कि यह परम्परा निरन्तर प्रचीयमान हो ताकि भारतीय परम्परा की भावधारा में इन्द्रधनुष की बहुरंगी छटा बनी रहे, एकरूपता की नीरसता उत्पन्न न हो और साथ ही राष्ट्र की भावात्मक एकता को बल मिले जो कि आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है और जिसकी पूर्ति के लिए भारतीय विद्या के अध्येताओं को सबसे आगे आना चाहिए क्योंकि भारत के सांस्कृतिक मानचित्र की प्रान्तरिक एकता का जो सूत्र स्थूल राजनैतिक दृष्टि की पकड़ में नहीं पाता उसे केवल संस्कृति का अध्येता ही पकड़ पाता है । दयानन्द भार्गव प्राचार्य एवम् अध्यक्ष, जोधपुर, संस्कृत विभाग, वसन्त पञ्चमी, सम्वत् २०४५ जोधपुर विश्वविद्यालय

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