Book Title: Jain Sahitya aur Itihas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya

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Page 11
________________ जिसकी अविश्रान्त सेवा-शुश्रूषाने अनेक लम्बी लम्बी और कष्टसाध्य बीमारियोंके समय मृत्युके मुँहमें जानेसे बचाया, जिसके पवित्र साहचर्यने पशुसे मनुष्य बनाया, कष्ट-कालमें धैर्य और साहस दिया, समाज-सुधार-कार्योंमें सदा उत्साहित किया, जिसने सब कुछ दिया ही, लिया कुछ भी नहीं, और जो अप्रत्याशितरूपसे परलोक-यात्रा करके हृदयमें सदाके लिए एक गहरी टीस छोड़ गई कि ___'मैं उसे सुखी न कर सका' अपनी उसी स्वर्गीया साध्वी पत्नीको

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