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और अनुभवी विद्वानों की एक समिति स्थापित हुई जिसने प्रारम्भ में अच्छा काम किया परन्तु अन्तत: अनेक कारणों, जैसे दूर देशान्तरों से सदस्यों की एकत्रता कष्टसाध्य होना इत्यादि, के उपस्थित होने से यह कमेटी भी अपने उद्देश्य को पूरा न कर सकी। जब यह दशा जैन-समाज की वर्तमान समय में है तो इसमें क्या
आश्चर्य है कि १८६७ ई० में कलकत्ता हाईकोर्ट ने जैनियों पर हिन्दू-लॉ को लागू कर दिया (महावीरप्रसाद बनाम मुसम्मात कुन्दन कुँवर ८ वीक्ली रिपोर्टर पृ० ११६)। छोटेलाल ब० छुन्नूलाल (४ कलकत्ता पृ० ७४४); बचेवी ब० मक्खनलाल ( ३ इलाहाबाद पृ० ५५); पैरिया अम्मानी ब० कृष्णा स्वामी ( १६ मदरास १८२) व मण्डित कुमार ब० फूलचन्द ( २ कलकत्ता वी० नोट्स पृ० १५४ ) ये सब मुक़दमे हिन्दू-ला के अनुसार हुए और गलत निर्णय हुए क्योंकि इनमें जैन रिवाज (नीति ) प्रमाणित नहीं पाया गया और जो मुक़दमे सही भी फैसल हुए* वह भी वास्तव में ग़लत ही हुए। क्योंकि उनका निर्णय मुख्य जैन रिवाजों की आधी..* उदाहरणार्थ देखो
शिवसिह राय ब० दाखो १ इला० ६८८ प्री० को०; अम्माबाई ब. गोविन्द २३ बम्बई २५७; लक्ष्मीचन्द बनाम गट्टोबाई ८ इला० ३१६; नानकचन्द गोलेचा ब० जगत सेठानी प्राण कुमारी बीबी १७ कलकत्ता ५१८, सोहना शाह ब० दीपाशाह पञ्जाब रिकार्ड १६०२ न० १५, शम्भूनाथ ब. ज्ञानचन्द १६ इला० ३७६ ( जिसका एक देश सही फैसला हुश्रा); हरनाभप्रसाद ब. मण्डिलदास २७ कल० ३७६; मनोहरलाल ब० बनारसीदास २६ इला० ४६५; अशरफी कुँअर ब. रूपचन्द ३० इला. १९७; रूपचन्द ब० जम्बू प्रसाद ३२ इला० २४७ प्री० कौ०, रूषभ ब. चुन्नीलाल अम्बूसेठ १६ बम्बई ३४७; मु० साना ब. मु. इन्द्रानी बहू ७८ इंडियन केसेज (नागपुर ) ४६१; मौजीलाल ब. गोरी बहू सेकेण्ड अपील न० ४१६ (१८६७ नाग पुर जिसका हवाला इंडियन केसेज़ ७८ के पृ० ४६१ में है)।
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