________________ नारकियों की गति-नरक से निकलने के बाद नारकी जीव मनुष्य या तिर्यंच ही बनता है, देव या नारकी नहीं बनता। उसमें भी पहली तीन नरकों के जीव मनुष्य जन्म पाकर तीर्थंकर पद पा सकते हैं, चौथी नरक के जीव मनुष्य-गति में निर्वाण पद भी पा सकते हैं। पाँचवी नरक के जीव मनुष्य बनकर संयम का लाभ ले सकते हैं। छठी नरक से निकले हुए देश-विरति (श्रावक-धर्म) और सातवीं नरक से निकले हुए जीव सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते हैं। भाव यह है कि नारकीय जीवों का सदा के लिए पतन नहीं हो जाता है। वह नरक से निकलकर, मनुष्य-जन्म लेकर सत्य, अहिंसा की साधना द्वारा अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। - अधोलोक में भवनपति देव / ___ अधोलोक में केवल नारकियों का ही निवास नहीं है, वरन् भवनपतिदेवों के भी भवन हैं। अधोलोक में एक राजू विस्तार वाली और एक लाख 80 हजार योजन की मोटी जो रत्नप्रभा नाम की प्रथम पृथ्वी है, उसके एक हजार योजन ऊपर और नीचे छोड़कर शेष मध्यगत एक लाख 78 हजार योजन क्षेत्र में 13 पाथड़े व 12 आंतरे हैं। उन 12 अंतरों में से ऊपर के दो आंतरे छोड़कर शेष दस आंतरों में अलग-अलग जाति के भवनपतिदेव रहते हैं। इन अंतरों में उनके विमान नहीं होते, बल्कि भवन होते हैं। ये देव उन भवनों में निवास करते हैं, अतः ये भवनपति कहलाते हैं। ये दस प्रकार के हैं - ___(1) असुरकुमार, (2) नागकुमार, (3) सुपर्णकुमार, (4) विद्युतकुमार, (5) अग्निकुमार, (6) द्वीपकुमार,(7) उदधिकुमार,(8) दिशाकुमार,(9) वायुकुमार,(10) स्तनितकुमार भवनपति देवों का स्वरूप-ये सब भवनपतिदेव कुमार' इसलिए कहे जाते हैं, क्योंकि वे कुमार की भाँति देखने में प्रायः सुंदर मनोहर तथा सुकुमार होते हैं व मधुर गति वाले तथा क्रीड़ाप्रिय होते हैं। ये देव अत्यन्त शक्तिशाली भी होते हैं। एक चुटकी बजाए उतनी देर में जंबूद्वीप की 21 बार प्रदक्षिणा कर सकते हैं। ये देव किसी पुरूष की आँख की भौंह पर 32 प्रकार के नाटक कर लेते हैं, फिर भी उस व्यक्ति को कष्ट नहीं होता। राजप्रश्नीय सूत्र में इन देवों द्वारा किये गये नाटक का विस्तार से वर्णन आता है। भवनपति देवों का देहमान 7 हाथ प्रमाण है। इन्हें 2 दिन से लेकर 9 दिन तक में भोजन करने की इच्छा होती है। ये मन इच्छित कार्य को साधने वाले होते हैं। ये देव दो से नौ मुहूर्त में श्वासोच्छ्वास लेते है। इनकी आयुष्य जघन्य 10,000 वर्ष तथा उत्कृष्ट एक सागरोपम है। असुरकुमार देव परम लावण्य युक्त मोटी काया वाले होते हैं। ये एक पलक झपकने मात्र में संपूर्ण जंबूद्वीप की प्रदक्षिणा कर सकते हैं। नागकुमार देवों का मस्तक और मुखमंडल अतीव शोभायुक्त होता है। ये मृदु व ललित गति वाले होते हैं तथा अपने फण से सारे जंबूद्वीप को ढक सकते हैं। सुपर्णकुमार देवों का गर्दन और उदर भाग अतीव सुशोभित होता है। ये देव अपने पंख द्वारा सारे जंबूद्वीप को ढक सकते हैं। विद्युतकुमार देव स्निग्ध अवयव वाले, ज्योति स्वभावी होते है। ये पूरे जंबूद्वीप में बिजली का प्रकाश फैला सकते है। अग्निकुमार देवों का सम्पूर्ण देह मानोन्मान प्रमाणयुक्त होता है। ये देव पूरे जंबूद्वीप को जलाकर भस्म कर सकते हैं। द्वीपकुमार देवों का स्कंध और वक्षस्थल, भुजा और अग्रहस्त विशेष शोभित होता है। ये देव पूरे जंबूद्वीप को एक हाथ पर स्थापन कर सकते हैं। उदधिकुमार देवों का उरू व कटि भाग अधिक शोभा सम्पन्न सचित्र जैन गणितानुयोग 19