________________ पूर्णिमा और अमावस्या के नक्षत्रों का संयोग अमावस अमावस्या कुल उपकुल कुलोपकुल क्रम क्रम 7 - 10 5 8 10 11 12 श्रावण माघ 3. घनिष्ठा 2. श्रवण 1. अभिजित भाद्रपद 8 फाल्गुन 6. उ. भा. 5. पू. भा. 4. शतभिषक आसोज 9 चैत्र 8. अश्विनी 7. रेवती कार्तिक वैशाख 10. कृतिका 9. भरणी मृगशीर्ष ज्येष्ठ | 12. मृगशीर्ष 11. रोहिणी पौष आषाढ़ | 15 पुष्य 14. पुनर्वसु | 13. आर्द्रा माघ श्रावण 17 मघा 16 अश्लेषा फाल्गुन भाद्रपद | 19. उ. फा. 18. पू. फा. चैत्र आसोज | 21. चित्रा 20. हस्त - वैशाख 4 कार्तिक | 23. विशाखा 22. स्वाति - ज्येष्ठ 5 मृगशीर्ष | 26. मूल | 25. ज्येष्ठा | 24. अनुराधा आषाढ़ पौष | 28. उत्तराषाढ़ा | 27. पूर्वाषाढ़ा प्रस्तुत कोष्ठक से यह सिद्ध होता है कि जिस मास की पूर्णिमा को जिस नक्षत्र का योग होता है, उस मास की अमावस को उस मास से सातवें मास की पूर्णिमा के नक्षत्र का योग होता है। जैसे- श्रावण मास से सातवाँ माघ मास है, तो माघ की पूर्णिमा को मघा और अश्लेषा नक्षत्र का योग होता है। इन दोनों नक्षत्रों का श्रावणी अमावस को योग होता है। इसी प्रकार जब उपकुल संज्ञक नक्षत्र पूर्णिमा को समाप्त करता है, तब उपकुल से पूर्व के श्रवणादि नक्षत्र अनुक्रम से अमावस को समाप्त करते हैं। जब कुलोपकुल संज्ञक नक्षत्र पूर्णिमा को समाप्त करते हैं, तब उपकुल संज्ञक नक्षत्रों से पूर्व के अभिजित आदि नक्षत्र अमावस्या को समाप्त करते हैं। चन्द्र के मार्ग में नक्षत्रों का संचार-चन्द्र की 15 गलियाँ हैं। उनमें से 8 गलियों में 28 नक्षत्र संचार करते हैं। यथा-1. चन्द्र की प्रथम वीथी में अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, स्वाति, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी। 2. तृतीय वीथीमें पुनर्वसु और मघ, 3. छठी वीथी में कृतिका, 4. सातवीं वीथी में रोहिणी और चित्रा, 5. आठवीं में विशाखा, 6. दसवीं में अनुराधा, 7. ग्यारहवीं में ज्येष्ठा, तथा 8. पन्द्रहवीं (अन्तिम) वीथी में हस्त, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, मृगशीर्षा, आर्द्रा, पुष्य और आश्लेषा में आठ नक्षत्र संचार करते हैं। (चित्र क्रमांक 91) _मनुष्य क्षेत्र में सभी नक्षत्र क्रम-क्रम से चन्द्र के साथ संयोग करते हैं, किन्तु मनुष्य क्षेत्र के बाहर जो नक्षत्र जहाँ हैं, वहीं रहता है, अत: वहाँ चन्द्र का अभिजित् नक्षत्र के साथ और सूर्य का पुष्य नक्षत्र के साथ सदा योग रहता है। सचित्र जैन गणितानुयोग 125