Book Title: Jain Ganitanuyog
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Vijayshree Sadhvi

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Page 180
________________ (1) उत्सेधांगुल-उत्सेध का अर्थ है-बढ़ना। उत्सेधांगुल माप की प्रथम इकाई है-परमाणु / इसके पश्चात् त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लीख, नँ, जौ (जव) ये सभी क्रमशः आठ गुना बढ़ते जाते हैं अथवा पाँचवाँ आरा 21 हजार वर्ष का होता है। साढ़े 10 हजार वर्ष व्यतीत होने पर जो मनुष्य होंगे उनकी उँगलियों के नाप को उत्सेधांगुल कहते हैं। उत्सेधांगुल से नारकी, तिर्यंच, मनुष्य व देवों के शरीर की अवगाहना का माप होता है। (2) आत्मांगुल-आत्मांगुल अर्थात् स्वयं की अंगुली। जिस काल में जो मनुष्य होते हैं, उनके अपने अंगुल को आत्मांगुल कहते हैं। अपने अंगुल से 12 अंगुल का एक मुख और नौ मुख (108 अंगुल) की ऊँचाई का एक पुरूष, श्रेष्ठ गुण युक्त पुरूष 108 अंगुल ऊँचे होते हैं। 104 अंगुल प्रमाण के पुरूष मध्यम कोटि के होते हैं तथा अधम पुरूष 96 अंगुल की ऊँचाई वाले होते हैं। आत्मांगुल के प्रमाण से कुएँ, बावड़ी, नदी, तालाब, वन, उद्यान, देवस्थान, द्वार, मार्ग, रथ, यान, पात्र, उपकरण आदि मानवकृत सभी वस्तुओं की लम्बाई-चौड़ाईऊँचाई मापी जाती है। (3) प्रमाणांगुल-अंगुल का यह सबसे बड़ा माप है। एक उत्सेधांगुल को 1,000 से गुणा करने पर एक प्रमाणांगुल बनता है। (यह भरत चक्रवर्ती के अंगुल का माप है।)' दिगम्बर मान्यता के अनुसार प्रमाणांगुल उत्सेधांगुल से 500 गुना है। अतः श्वेताम्बर मान्यता अनुसार प्रमाणांगुल निष्पन्न योजन = 4,000 कोस का होता है। दिगम्बर मान्यता अनुसार प्रमाणांगुल निष्पन्न योजन = 2,000 कोस का होता है। प्रमाणांगुल से बने योजन को असंख्यात से गुणा करने पर सात राजू प्रमाण लम्बी आकाश प्रदेश की एक 'श्रेणी' होती है। उसको असंख्यात से गुणा करने पर एक 'प्रतर' होता है तथा एक प्रतर को असंख्यात से गुणा करने पर 'लोक' का परिमाण बनता है और लोक को अनन्त से गुणा करने पर 'अलोक' का परिमाण बनता है। लोक में रहे हुए द्वीप, समुद्र, क्षेत्र, नदी, पर्वत आदि सभी शाश्वत पदार्थो की लम्बाई-चौड़ाई आदि प्रमाणांगुल के द्वारा मापी जाती है। इन तीनों के पुनः तीन-तीन भेद हैं-(1) सूच्यंगुल,(2) प्रतरांगुल, तथा (3) घनांगुल। (1) सूच्यंगुल-सूच्यंगुल में असंख्य प्रदेश होते हैं लेकिन वे एक सीधी रेखा में होते हैं। उनमें चौड़ाई और मोटाई नहीं होती मात्र लम्बाई होती है। इसमें प्रदेश इस प्रकार स्थापित होते हैं कि इसका आकार सूई (सूचिका) के समान बने। एक अंगुल लम्बी तथा एक ............. सूची प्रदेश चौड़ी आकाश प्रदेशों की श्रेणी (पंक्ति) को सूच्यंगुल कहते हैं। (2) प्रतरांगुल-वर्ग को प्रतर कहते हैं। किसी भी राशि को दो बार लिखकर गुणित करने पर जो संख्या बने वह 'वर्ग' है। वर्गाकार या आयताकार अंगुल को प्रतरांगुल कहते हैं अर्थात् जो एक अंगुल लम्बा और एक अंगुल चौड़ा हो वह प्रतरांगुल प्रतर 1. वर्तमान में एक उत्सेधांगुल अर्थात् लगभग 17 इंच, उत्सेधांगुल से एक हाथ अर्थात् 17 से 18 इंच, एक गाऊ अर्थात् 27 मील, एक योजन अर्थात् 9 मील। 158 सचित्र जैन गणितानुयोग

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