Book Title: Jain Ganitanuyog
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Vijayshree Sadhvi

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Page 194
________________ अध्याय 6: विज्ञानसम्मत विश्व वर्तमान वैज्ञानिक जिस पृथ्वी का वर्णन करते हैं, उसी पृथ्वी का वर्णन जैन आगमों में स्थान-स्थान पर मिलता है। किन्तु दोनों की मान्यता में आकाश-पाताल जितना अंतर है। जैन भूगोल-खगोल और वर्तमान विज्ञान की मान्यताओं में इतना अधिक अंतर है कि उसके साथ किसी भी प्रकार से हम तालमेल बिठा सकें, यह शक्य नहीं है। अत: विज्ञानसम्मत विश्व को अलग अध्याय देकर हम जैन दृष्टिए मध्यलोक ग्रंथ के आधार पर यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। पृथ्वी पर जीव सृष्टि-वैज्ञानिक इस लोक को जैन दर्शन के समान शाश्वत नहीं मानते अपितु एक घटना का परिणाम मानते हैं। उनके अनुसार नारंगी के आकार की गोल यह सम्पूर्ण पृथ्वी; जिसका व्यास लगभग 8 हजार मील और परिधि लगभग 25 हजार मील है, वह आज से करोड़ों वर्ष पूर्व ज्वालायुक्त अग्नि का गोला थी। वह अग्नि धीरे-धीरे ठंडी होती गई। यद्यपि आज पृथ्वी का भूमिभाग ठंडा है, तथापि इसके भीतर अग्नि की तीव्र ज्वालाएँ है और इसी कारण पृथ्वी का भूतल भी थोड़ा उष्ण है। नीचे की जमीन खोदने पर उत्तरोत्तर अधिक उष्णता मिलती है। कभी-कभी यह ज्वाला तीव्र बनकर भूकंप या ज्वालामुखी के रूप में प्रगट होता है। इसी के कारण पर्वत, पृथ्वी, नदी, समुद्र आदि में फेरफार होता रहता है, अग्नि के ताप से पृथ्वी के द्रव्य यथायोग्य दबाव व ठंडक पाकर विभिन्न धातुओं व उपधातुओं के रूप में परिवर्तित होते रहते हैं। वे ही कोयला, लोहा, सोना, चाँदी, पेट्रोल या पानी के रूप में दिखाई देते हैं। जल और वायु ही सूर्य के ताप से बादल बनकर आकाश मंडल पर छा जाते हैं। यह वायुमंडल पृथ्वी के भूतल से कम-कम होता हुआ लगभग 400 मील तक फैला हुआ है। पृथ्वी सब जगह समतल नहीं है। हिमालय का गौरीशंकर (मांउट ऐवरेस्ट) पृथ्वी का सबसे चोटी का भाग माना जाता है, वह समुद्रतल से 29 हजार फुट अर्थात् लगभग साढ़े पाँच मील ऊँचा है। समुद्र तल 35,400 फुट अर्थात् लगभग 6 मील माना जाता है, इस प्रकार पृथ्वीतल के उपरी और निम्नतल में साढ़े 11 मील का अंतर है। ___पृथ्वी ठंडी होने पर उस पर जमी परतें जो लगभग 70 मील की मानी जाती है, वे साढ़े तीन करोड़ वर्ष पहले जमीं थी। पृथ्वी पर मात्र ऊपर के 34 मील की परत पर ही जीवनी शक्ति है। शेष स्थान पर नहीं। इस आधार पर यह अनुमान किया जाता है कि पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति 2 करोड़ वर्ष पूर्व और मानव विकास के चिह्न केवल एक करोड़ वर्ष पूर्व के हैं। जीव विकास का क्रम-आधुनिक जीव-शास्त्र के अनुसार जीव के विकास का क्रम निम्न प्रकार से है-सर्वप्रथम स्थिर जल पर जीवकोश उत्पन्न हुए, वे पत्थर आदि जड़ पदार्थों से तीन बातों में विशेष थे(1) वे आहार लेते थे, (2) वे कही भी चलकर जा सकते थे, (3) वे अपने समान अन्य जीवकोश भी तैयार कर सकते थे। कालक्रम से इनमें से कितने ही जीवकोश धरती में अपनी जड़ें जमाकर वनस्पति बन 172 सचित्र जैन गणितानुयोग

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