Book Title: Jain Ganitanuyog
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Vijayshree Sadhvi

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Page 192
________________ 1. सिद्ध जीवों की राशि, 2. निगोद के जीवों की राशि, 3. वनस्पतिकायिक जीवों की राशि, 4. तीनों कालों के समयों की राशि, 5. सर्वपुद्गल द्रव्यों की राशि, तथा 6. लोकाकाश व अलोकाकाश के प्रदेशों की राशि इनको मिलाकर फिर सर्वराशि का तीन बार वर्ग करके उस राशि में केवलद्विक (केवल दर्शन, केवल ज्ञान) की अनन्त पर्यायों का प्रक्षेपण कर उत्कृष्ट अनन्तानन्त राशि का परिमाण भी वर्णित किया है। (त्रिलोकसार, गा. 49) गणना संख्या का संक्षिप्त प्रारूप इस प्रकार हैंत्रिविध संख्यात 1.जघन्य 2. मध्यम 3. उत्कृष्ट नवविध असंख्यात 1. जघन्य परीत-असंख्यात 4. जघन्य युक्त-असंख्यात 7. जघन्य असंख्यात-असंख्यात 2. मध्यम परीत-असंख्यात 5. मध्यम युक्त-असंख्यात 8. मध्यम असंख्यात-असंख्यात 3. उत्कृष्ट परीत-असंख्यात 6. उत्कृष्ट युक्त-असंख्याता 9. उत्कृष्ट असंख्यात-असंख्यात अष्टविध अनन्त 1. जघन्य परीत-अनन्त 4. जघन्य युक्त-अनन्त 7. जघन्य अनन्त-अनन्त 2. मध्यम परीत-अनन्त 5. मध्यम युक्त-अनन्त 8. मध्यम अनन्त-अनन्त 3. उत्कृष्ट परीत-अनन्त 6. उत्कृष्ट युक्त-अनन्त पुद्गल परावर्तन पुद्गल परावर्तन से तात्पर्य है-चौदह राजू लोकवर्ती सभी पुद्गलों का परावर्तन अर्थात् औदारिक आदि शरीर रूप से ग्रहण करके छोड़ना। अनादि काल से चतुर्गति में परिभ्रमण करते हुए जीव ने अनंत पुद्गल परावर्तन किये हैं। यह पुद्गल परावर्तन चार प्रकार का है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। पुन: प्रत्येक के सूक्ष्म और बादर ऐसे दो-दो भेद हैं। प्रत्येक पुद्गल परावर्तन स्थूल दृष्टि से अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण होता (1) द्रव्य पुद्गल परावर्तन-संसार रूपी भयंकर अटवी में परिभ्रमण करता हुआ कोई आत्मा जब चौदह राजू लोकवर्ती औदारिकादि सभी पुद्गलों को अनंत जनम-मरण करके शरीर रूप में क्रम से या अक्रम से ग्रहण करके छोड़ता है। उसमें जितना काल लगता है उसे बादर द्रव्य पुद्गल परावर्त कहते हैं। इस पुद्गल परावर्तन में एक समय में औदारिक रूप से जिन पुद्गलों को ग्रहण किया वे औदारिक की गिनती में वैक्रिय रूप से ग्रहण किये वो वैक्रिय में इसी प्रकार तैजस, भाषा, श्वासोच्छवास, मन और कार्मण-इन सातों के प्रतिसमय में जो पुद्गल ग्रहण करें, वे उसमें गिनना बादर द्रव्य पुदगल परावर्तन कहलाता है। सूक्ष्म द्रव्य पुद्गल परावर्त्तन में औदारिकादि सातों वर्गणा के सभी पुद्गलों को क्रम से ग्रहण करके छोड़े। यदि एक वर्गणा के पुद्गल के मध्य दूसरी वर्गणा के पुद्गलों को फरसा है तो वे इस गिनती में नहीं 170 सचित्र जैन गणितानुयोग

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