________________ 15 अहोरात्र = 1 पक्ष 2 पक्ष = 1 मास 2 मास = 1 ऋतु (हेमंत, शिशिर, बसंत आदि) 3ऋतु = 1 अयन 2 अयन = 1 संवत्सर (वर्ष) 5 संवत्सर = 1 युग 20 युग = 100 वर्ष 10 शतक = 1000 वर्ष शतसहस्त्र वर्ष = 1 लाख वर्ष 84 लाख वर्ष = 1 पूर्वांग 84 लाख पूर्वांग = 1 पूर्व 84 लाख पूर्व = 1 त्रुटितांग इसी प्रकार 84-84 से गुणा करते जाने पर त्रुटित, अड़डांग, अडड, अववांग अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म नलिनांग, नलिन, अर्थनुपूरांग, अर्थनुपूर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, नयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका संख्या बनती है। यह संख्या 7582, 6325, 307, 3010, 2411, 5797, 3569, 9756, 9640, 6218, 9668, 4808, 0183, 296 इन 54 अंकों पर 140 बिंदी लगाने पर 194 अंक प्रमाण है। ग्रंथांतरों में इन संख्याओं के क्रम और नामों में अंतर हैं, तथापि संख्या में किसी प्रकार का अंतर नही आता। शीर्षप्रहेलिका का अंतिम संख्यात मान है। इसके बाद गणित का विषय समाप्त हो जाता है। (2) असंख्यात काल-मान-'शीर्षप्रहेलिका' के बाद अंसख्यात 'काल-मान' प्रारम्भ होता है। उसे पल्योपमकाल मापने का उपमा द्वारा समझाया गया है। उपमा के मुख्य दो भेद घनवृत्तपल्य हैं-(1) पल्योपम, (2) सागरोपम। पल्योपम काल-मान- बेलनाकार खड्डे या कुएँ को ‘पल्य' कहा जाता है। 'पल्य' की उपमा से बताया गया मान ‘पल्योपम' है। पल्योपम के तीन प्रकार है-(1) उद्धार पल्योपम, (2) अद्धा पल्योपम, (3) क्षेत्र पल्योपम / (चित्र क्रमांक 106) (1) उद्धार पल्योपम-उत्सेधांगुल प्रमाण एक एक योजन योजन लम्बे, एक योजन चौड़े एक योजन गहरे एवं तीन योजन से कुछ अधिक परिधि वाले एक गोलाकार पल्य या कुएँ में एक दिन के अथवा सात दिन तक के बालकों के बालाग्र किनारे तक इस प्रकार लूंस-ठूस कर भरे गये हों कि उन पर चक्रवर्ती की सेना भी निकल जाये पर वे दबे नहीं। वे इतने सघन हों कि उन बालों को न अग्नि जला सके न हवा उड़ा सके। परिपूर्ण उस पल्य में से एक योजन 1. एक पूर्व का परिमाण-70 खरब 56 (70,56,00,00,00,000) वर्ष का होता है। चित्र क्र.106 सचित्र जैन गणितानुयोग A -165