Book Title: Jain Ganitanuyog
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Vijayshree Sadhvi

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Page 186
________________ काल मान जैन दर्शन में काल-गणना के मान तीन भागों में विभक्त है-(1) संख्यात काल-मान, (2) असंख्यात काल-मान, (3) अनंत काल-मान। 'समय' से लेकर 'शीर्ष प्रहेलिका' तक का काल 'संख्यात काल मान' है। पल्योपम, सागरोपम आदि 'असंख्यात काल-मान' और पुद्गल-परावर्तन आदि अनंत काल-मान है। प्रस्तुत ग्रंथ में स्थान-स्थान पर संख्यात, असंख्यात और अनंत काल-मानों का प्रयोग हुआ है; अत: यहाँ पर इनकी विस्तृत परिभाषाएँ दी जा रही हैं (1) संख्यात काल-मान-काल का अत्यंत सूक्ष्म अविभाज्य भाग 'समय' है। 'समय' से प्रारम्भ करते हुए आवलिका, मुहूर्त, अहोरात्र, तथा आगे 194 अंक रूप शीर्ष प्रहेलिका तक के काल-मान को 'संख्यात' कालमान कहते है। समय-समय की सूक्ष्मता को व्यवहार में समझाने के लिए अनुयोगद्वार सूत्र में जीर्ण वस्त्र-कर्त्तन का उदाहरण दिया है एक तरूण, बलवान और कला निपुण दर्जी किसी एक अति जीर्ण-शीर्ण वस्त्र को एक ही बार में एक हाथ प्रमाण फाड़ डालता है, उतने काल में असंख्यात समय व्यतीत हो जाते हैं, इस सिद्धांत को इस प्रकार समझाया गया है-वस्त्र में अनेक तंतु हैं, प्रत्येक तन्तु अनेक 'पक्ष्मणों' का समुदाय है; प्रत्येक पक्ष्मण अनेक 'समितियों के संगठन से बना है; प्रत्येक 'समिति' अनन्त 'संघातों' का समुदाय है। प्रत्येक संघात अनन्त परमाणुओं के मिलने से बना है। अतः जब अनंत परमाणुओं का क्षरण होगा तभी एक संघात फटेगा। अनंत संघातों के फटने पर ही एक समिति, अनेक समितियों के फटने पर ही एक पक्ष्मण, अनेक पक्ष्मणों के फटने पर ही एक तंतु और अनेक तंतु फटेंगे तभी सम्पूर्ण वस्त्र फटेगा। जिस प्रकार वस्त्र की प्रत्येक क्रिया एक के बाद एक घटित होती है, तथापि हमें सम्पूर्ण वस्त्र एक साथ एक समय में फटा, ऐसा प्रतीत होता है। उसी प्रकार सूक्ष्मातिसूक्ष्म क्रिया में असंख्यात समय पूर्ण हो जाता है। समय के पश्चात् उसके समूह रूप कालविभाग को निम्न प्रकार से वर्णित किया हैसमय = काल का सूक्ष्मतम अंश जघन्य युक्त असंख्यात समय = 1 आवलिका 256 आवलिका = 1 क्षुल्लक भव (निगोद का) संख्यात आवलिका = 1 उच्छ्वास संख्यात आवलिका = 1 नि:श्वास (अथवा) 17/ क्षुल्लक भव = 1 श्वासोच्छ्वास 1 उच्छ्वास निःश्वास के काल = 1 प्राण 7 प्राण = 1 स्तोक 7स्तोक = 1 लव 30 मुहूर्त = 1 अहोरात्रि (एक दिन और रात) 77 लव = 1 मुहूर्त (48 मिनट) 1. एक उच्छ्वास में स्थूल गणना से 2880/3773 सैकण्ड होते हैं। इतने ही नि:श्वास में भी। 2. 3773 उच्छ्वास, नि:श्वास का एक मुहूंत कहा है। 164 ARSIC सचित्र जैन गणितानुयोग

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