________________ एक-एक बालाग्र प्रतिसमय निकाला जाये, जब तक कि वह पल्य पूर्ण रूप से खाली या निर्लेप न हो जाये-उतने काल को एक उद्धार पल्योपम' कहते हैं। उद्धार पल्योपम के भी दो भेद हैं-(1) स्थूल (बादर) उद्धार पल्योपम, (2) सूक्ष्म उद्वार पल्योपम। स्थूल उद्धार पल्योपम में प्रतिसमय एक बालाग्र निकाला जाता है और सूक्ष्म उद्धार पल्योपम में उन बालों के अंसख्य खंड करके फिर प्रतिसमय एक-एक खंड निकाला जाता है। इतने अधिक बाल निकलने में भी जो संख्या होगी उसे निश्चय में तो संख्यात ही कहेंगे, असख्यात नही। क्योंकि निश्चय से तो बाल संख्यात हैं, अत: संख्यात समय में वे निकल जायेंगे। इसी प्रकार सूक्ष्म उद्धार पल्योपम में भी असंख्य अदृश्य टुकड़ों को निकालने में संख्यात करोड़ वर्ष का समय ही लगता है। (2) अद्धा पल्योपम-अद्धा पल्योपम के भी दो प्रकार हैं-(1) बादर अद्धापल्योपम, (2) सूक्ष्म अद्धापल्योपम। / सौ-सौ वर्ष की अवधि में एक-एक बाल निकालने में जो समय लगे उसे बादर (स्थूल) अद्धा पल्योपम कहते हैं। यह अद्धा पल्योपम संख्यात करोड़ वर्षों का ही होता है। सौ-सौ वर्ष में एक-एक सूक्ष्म बालाग्र के खण्डों को निकालने में जो अवधि लगती है उसे सूक्ष्म अद्धा पल्योपम कहते हैं। यह सूक्ष्म अद्धा पल्योपम असंख्यात करोड़ वर्षों का होता है। (3) क्षेत्र पल्योपम-क्षेत्र पल्योपम दो प्रकार का है-(1) बादर क्षेत्र पल्योपम, (2) सूक्ष्म क्षेत्र पल्योपम। पूर्व कथित पल्य के आकाश प्रदेशों में से समय-समय एक-एक आकाश प्रदेश का अपहरण करते हुए, जितने काल में पल्य खाली हो वह एक बादर (व्यवहार) क्षेत्र पल्योपम है तथा ठसाठस भरे हुए सूक्ष्म बालाग्र-खण्डों को छुए हुए एवं नहीं छुए हुए सभी आकाश प्रदेशों में से प्रतिसमय निकालने में जितना काल लगे वह सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम है। इसमें भी असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी परिमाण काल है, किन्तु इसका काल बादर क्षेत्र पल्योपम के काल से असंख्यात गुणा बड़ा है। सागरोपम-सागरोपम भी तीन प्रकार का हैं-(1) अद्धा सागरोपम, (2) उद्धार सागरोपम, (3) क्षेत्र सागरोपमा (1) अद्धा सागरोपम-बादर अद्धा पल्योपम के काल को 10 कोटा कोटी से गुणा करने पर बादर अद्धा सागरोपम और सूक्ष्म अद्धा पल्योपम के काल को 10 कोटाकोटि से गुणा करने पर एक सूक्ष्म अद्धा सागरोपम होता है। अद्धा सागरोपम के काल से अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी का काल मान किया जाता है। सूक्ष्म अद्धा सागरोपम परिमाण से चारों गति के जीवों की आयु, कर्म स्थिति, काय स्थिति का तथा भव स्थिति (वर्तमान भव की पर्याय) का अंकन किया जाता है। (2) उद्धार सागरोपम-बादर उद्धार पल्योपम के काल को दस कोटा कोटी (10 करोड़ x 10 करोड़) से गुणा करने पर एक बादर उद्धार सागरोपम होता है और सूक्ष्म उद्धार पल्योपम के काल को दस कोटा कोटी से गुणा करने पर सूक्ष्म उद्धार सागरोपम का काल बनता है। इन दोनों पल्य का परिमाण सागर के समान 166 सचित्र जैन गणितानुयोग