Book Title: Jain Ganitanuyog
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Vijayshree Sadhvi

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Page 182
________________ प्रथम-नरक से मध्यलोक मध्यलोक से पहला-दूसरा देवलोक तक पहले-दूसरे से तीसरे-चौथे देवलोक तक तीसरे-चौथे से पाँचवे-छठे देवलोक तक __पाँचवे-छठे से सातवें-आठवें देवलोक तक सातवें-आठवें से नौवें-दसवें देवलोक तक नौवें-दसवें से ग्यारहवें-बारहवें देवलोक तक ग्यारहवें-बारहवें से नौ ग्रैवेयक देवलोक तक नौ ग्रैवेयक से पाँच अनुत्तरविमान देवलोक तक पाँच अनुत्तरविमान से सिद्ध क्षेत्र सर्वलोकघनाकार रज्जु 10 1972 16/ 37/ 142 12/ 10% 872 62 11 343 क्षेत्र का माप करने के लिये-रज्जू का माप अंतिम है, इसी से लोक का क्षेत्रफल जाना जाता है, इसके पश्चात् अलोक का माप करने के लिये लोक को आधार बनाया जाता है, अर्थात् अलोक कितना बड़ा है, इस प्रश्न का उत्तर यही है कि जिसमें अनंत लोक समा जाय इतना विशाल आकाश क्षेत्र अलोक का है। अलोक की कोई सीमा नहीं है, वह अनंतानंत है। आठ प्रकार का माप-जंबूद्वीप एक लाख योजन का है, यह वृत्त विष्कम्भ अर्थात् गोल एवं थाली के समान चपटे आकार का है। ऐसे आकार को प्रतरवृत्त' कहा जाता है। इस प्रकार आठ माप कहे गये है (1) परिधि Circumference-गोल वस्तु का घेराव। (2) गणितपद या क्षेत्रफल Area of a Circle-अमुक माप के समचौरस खंड अथवा वृत्त (गोलाकार) क्षेत्र के योजन जितने समचौरस भाग। जैसे कोई व्यक्ति जम्बूद्वीप के 1 योजन लम्बे और 1 योजन चौड़े टुकड़े करना चाहे तो वह जम्बूद्वीप के 7 अरब, 90 करोड़, 56 लाख,94 हजार 150 टुकड़े कर सकता है। ___(3) जीवा Chord-किसी भी क्षेत्र की पूर्व से पश्चिम तक की उत्कृष्ट लम्बाई अथवा धनुष की डोरी जैसी उत्कृष्ट लम्बाई। (4) ईषु Height of a Segment-तीर चढ़े धनुष में तीर का स्थान मध्य में होता है वैसे ही मध्य की चौड़ाई अथवा धनुपृष्ठ के मध्य से जीवा के मध्य भाग तक का विष्कम्भ। (5) धनुःपृष्ठ Are of a Circle-अर्द्धचंद्राकार भरतादि क्षेत्र का पीछे का भाग अर्थात् धनुष के पीछे का भाग। (6) बाहा Arc(s) of the Zone of two parrelel Chords-धनु:पृष्ठ के दोनों ओर के मध्य का मुड़ा हुआ अधिक भाग। (7) प्रतर Area of a Segment-खंड का क्षेत्रफल अथवा चौकोर पदार्थ की लम्बाई-चौड़ाई का गुणाकार। (8) घन Cube-लम्बाई-चौड़ाई और ऊँचाई का गुणाकार / (चित्र क्रमांक 101) O-160A asana स चित्र जैन गणितानुयोग 16:

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