________________ ज्योतिष्क देवों की गति-सभी ज्योतिषी देवों में चन्द्रमा का विमान सबसे बड़ा है। अत: वह अत्यन्त मंद गति वाला है। सूर्य विमान उसकी अपेक्षा छोटा होने से तीव्रगामी, उससे शीघ्रतर ग्रह, इनसे शीघ्रतर नक्षत्र एवं नक्षत्रों से भी शीघ्रंतर गति वाले तारगण हैं। ग्रहों में बुध से शुक्र उससे मंगल, उससे वृहस्पति और उससे शनि क्रमशः शीघ्र गति वाले हैं। महर्द्धिक का क्रम-महर्द्धिक का क्रम इससे विपरीत है। अर्थात् जिसकी गति जैसे-जैसे मंद होती है, वैसे-वैसे महर्द्धिकपने में बढ़कर है। पश्चानुपूर्वी से तारों की ऋद्धि अल्प है, नक्षत्र उससे अधिक ऋद्धि सम्पन्न, उनसे ग्रह विशेष, ग्रहों से सूर्य और सूर्य से भी अतिशय ऋद्धि सम्पन्न चन्द्र है। ___ ज्योतिष्क देवों में प्रथम क्रम-संवत्सरों में प्रथम चन्द्र-संवत्सर है। अयनों में प्रथम दक्षिणायन है। ऋतुओं में प्रथम प्रावृट-आषाढ़-श्रावणरूप पावस ऋतु है। महीनों में प्रथम श्रावण है। पक्षों में प्रथम कृष्ण पक्ष है। अहोरात्र में प्रथम दिवस है। मुहूर्तों में प्रथम रुद्र मुहूर्त है। करणों में प्रथम बालवकरण है। नक्षत्रों में प्रथम अभिजित् नक्षत्र है। _ज्योतिष्क का अल्प बहुत्व-चन्द्र और सूर्य की संख्या सम है। सबसे अल्प नक्षत्र हैं। ग्रह संख्येय गुण है, तारा उससे संख्येय गुण है। - सूर्य विषयक ज्ञातव्य बिंदु 1. सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र के सर्वमण्डल क्षेत्र 510-48/61 योजन है। 2. जंबूद्वीप में सूर्यमण्डल और चन्द्रमण्डल क्षेत्र का चक्रवाल विष्कंभ 180 योजन है। 3. प्रत्येक मण्डल का चक्रवाल विष्कंभ और सूर्य विमान विष्कंभ 48/61 योजन है। 4. एक सूर्यमण्डल से दूसरे सूर्यमण्डल की दूरी 2 योजन की है। 5. पहले आभ्यन्तर मण्डल का विष्कभ तथा उसी मण्डल में रहे हुए सूर्य-सूर्य के बीच तथा चन्द्र-चन्द्र के बीच अन्तर 99,640 योजन का है। 6. सर्व बाह्यमण्डल का विष्कंभ तथा उसी मण्डल में रहे हुए सूर्य-सूर्य तथा चन्द्र-चन्द्र के बीच अन्तर 1,00,660 योजन का है। 7. सर्वप्रथम मण्डल की परिधि 3,15,089 योजन तथा सर्वबाह्यमण्डल मण्डल की परिधि 3,18,315 योजन है। 8. जम्बूद्वीप में सूर्य के 65 मण्डल तथा लवण समुद्र में 119 मण्डल हैं। इस प्रकार कुल 184 मण्डल हैं। 9. 184 मण्डलों में प्रत्येक मण्डल के बीच की अन्तरवृद्धि 2-48/61 योजन है। 10. प्रथम मण्डल से लेकर सभी बाह्य मण्डलों तक प्रत्येक मण्डल में सूर्य-सूर्य के बीच की अन्तरवृद्धि 5-35/61 योजन है। 11. सूर्य-चन्द्र का प्रथम आभ्यन्तर मण्डल मेरु पर्वत से 44,820 योजन तथा सर्वबाह्य मण्डल 45,330 योजन है। सचित्र जैन गणितानुयोग 135