________________ जधाप लाम-न्हा कमप्यमान 40. मध्य में स्थित सिद्धायतनः HEART पश्चिमी शाखा योजन उत्तरीय शाखा 3योजन मुख्य शाखा योजन दक्षिणी शाखा योजन के भवन उत्तर पश्चिम - मणिपीठिका दक्षिण 2 कोस तोरण 2 कोस ऊँची -500 योजन चौड़ाई जंबदीप नाम-जम्बद्वीप के मध्यभाग में , ' ' ' जम्ब वक्ष स्थित उत्तर कुरूक्षेत्र के पूर्व कोने पर 8 योजन ऊँचा एवं आधा योजन मोंटा मणिरत्नमय जंबू नामक वृक्ष है। वृक्ष के समान आकृति, शाखा, पत्र, पुष्प, फल आदि होने के कारण इसे वृक्ष कहते हैं। इस वृक्ष का मूल वज्र रत्नमय, शाखाएँ जंबूनद जातीय स्वर्ण की व फल-फूल, पत्ते आदि अरूण मृदुल स्वर्णमय है। इस प्रकार यह वृक्ष संपूर्ण पृथ्वीमय रत्ननिर्मित और त्रिकाल शाश्वत है। 500 योजन लम्बे-चौड़े गोलाकार जम्बूपीठ के बीचोंबीच आठ योजन अनादृत देव लम्बी-चौड़ी, मणिपीठिका के ऊपर यह स्थित है। पूर्वी शाखा इसके चारों ओर 4-4 योजन ऊँचे 108 वृक्ष एवं योजन उनसे आकीर्ण वन है। - चौड़ाई ____जंबू सुदर्शन के चारों दिशाओं में चार शाखाएँ हैं। उनमें पूर्व की शाखा पर एक कोस लम्बे-चौड़े स्वर्णमय भवन में जम्बूद्वीप का अधिष्ठायक व्यंतर जाति का जम्बू पीठिका पद्मवर वेदिका 'अनादृत' देव जो अपने को वैभव, ऐश्वर्य तथा ऋद्धि में अनुपम मानता है तथा पल्योपम की चित्र क्र. 27 आयुष्य वाला है, वह अपनी चार अग्रमहिषियों, चार हजार सामानिक देवों एवं 16 हजार आत्मरक्षक देवों व परिवार के साथ निवास करता है, शेष तीन शाखाओं पर प्रासाद हैं। वर्तमान में जो अनादृत देव हैं, वह पूर्वभव में जम्बूस्वामी के चाचा थे। जम्बू सुदर्शन वृक्ष के बारह नाम कहे गये हैं-(1) सुदर्शना, (2) अमोघा, (3) सुप्रबुद्धा, (4) यशोधरा, (5) विदेहजम्बू, (6) सौमनस्या, (7) नियता, (8) नित्यमण्डिता, (9) सुभद्रा, (10) विशाला, (11) सुजाता तथा (12) सुमना / (चित्र क्रमांक 27) जंबूद्वीप की जगती-'जगती' का अर्थ है, कोट या गोलाकार दीवार / जंबूद्वीप एक मणिरत्नों से निर्मित वज्रमय जगती से चारों ओर से घिरा हुआ है। वह जगती आठ योजन ऊँची, मूल में बारह योजन चौड़ी, बीच में आठ योजन चौड़ी और ऊपर चार योजन चौड़ी, गाय की पूँछ के समान आकृति की है। वह मूल में चौड़ी और ऊपर संकरी है। जगती के मध्य लवण समुद्र की तरफ चारों ओर वलयाकार गवाक्ष-जाली समूह है, वह आधा योजन ऊँचा और 500 धनुष चौड़ा है। यहाँ देव और विद्याधर मनुष्य मनोरंजन हेतु आते हैं। जगती के बीच में अनेकों बड़े-बड़े छिद्र हैं जिनमें से लवण समुद्र का पानी जंबूद्वीप में आता है। (चित्र क्रमांक 28) / पद्मवरवेदिका-जगती के ऊपर ठीक मध्यभाग में एक विशाल गोलाकार पद्मवरवेदिका है, जो वैडूर्यरत्न के स्तम्भों तथा स्वर्ण-रजत के फलक से निर्मित है। वह आधा योजन ऊँची और 500 धनुष चौड़ी है। इसकी गोलाई जगति के मध्यभाग की परिधि के बराबर हैं। पद्मवरवेदिका स्थान-स्थान पर सैकड़ों श्वेतकमलों से सुशोभित होने के कारण इसे 'पद्मवरवेदिका' कहा जाता है। सचित्र जैन गणितानुयोग 33