________________ पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड है तथा विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित-ये चार द्वार क्रमशः पूर्वादि चार दिशा में हैं। पुष्कर द्वीप में पद्मवृक्षों, पद्मवनों की अधिकता है, अत: इस द्वीप को पुष्कर द्वीप कहते हैं। यहाँ पद्मवृक्ष पर 'पद्मदेव' और महापद्मवृक्ष पर 'पुण्डरीक देव' सपरिवार निवास करता है, उसकी एक पल्योपम की स्थिति है। महाऋद्धिशाली ये दोनों देव पुष्करद्वीप के अधिष्ठायक हैं। मानुषोत्तर पर्वत-पुष्करवर द्वीप के ठीक मध्य भाग में चूड़ी के समान वलयाकार मानुषोत्तर पर्वत है, वह 1,721 योजन ऊँचा, 430 योजन व एक गाऊ पृथ्वी में गहरा, मूल में 1,022 योजन चौड़ा, मध्य में 723 योजन और शिखर पर 424 योजन का चौड़ा है। मनुष्य क्षेत्र की सीमा बाँधने वाला या मनुष्य क्षेत्र के अंत में होने के कारण इसे 'मानुषोत्तर पर्वत' कहते हैं। यह सिंहनिषादी आकार का सुवर्णमय है। इस पर्वत के कारण पुष्करद्वीप के दो विभाग हो गये हैं-1. आभ्यन्तर पुष्कराद्ध, 2. बाह्य पुष्करार्द्ध। (1) आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध द्वीप-मानुषोत्तर पर्वत के अंदर के विभाग को 'आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध द्वीप' कहते हैं। आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ आठ लाख योजन का है। उसकी परिधि 1,42,30,249 योजन है। धातकी खण्ड द्वीप के समान ही इसमें क्षेत्र, पहाड़ व नदियों की संख्या है। पुष्करार्ध के प्रत्येक क्षेत्र की लम्बाई 8 लाख योजन और चौड़ाई विषम होने से अलग-अलग हैं। प्रारम्भ में चौड़ाई कम है और क्रमशः बढ़ती हुई अंत में अधिक हैं प्रत्येक पर्वत की लम्बाई भी 8 लाख योजन है और चौड़ाई धातकीखंड के वर्षधर पर्वतों की अपेक्षा दुगुनी है। ऊँचाई जम्बूद्वीप के पर्वतों के समान है। गहराई ऊँचाई से 1/4 भाग है। इस द्वीप के मध्य में भी दो इषुकार पर्वत है, जिनसे इसके भी दो विभाग हो गये हैं-(1) पूर्व पुष्करार्द्ध द्वीप और (2) पश्चिम पुष्करार्द्ध द्वीप। धातकी खण्ड जैसे और उतने ही ऊँचे तथा विस्तार वाले दो मेरू पूर्व में मन्दिर और पश्चिम में विद्युन्माली आदि समस्त शाश्वत पदार्थ पुष्करार्द्ध द्वीप में भी है। यहाँ भी धातकीखंड के समान पूर्व पुष्करार्द्ध की 8, 25, 9 और 24वीं विजय में क्रमश: श्री चन्द्रबाहु स्वामी, भुजंगस्वामी, ईश्वर स्वामी और नेमप्रभु स्वामी तथा पश्चिम पुष्करार्द्ध द्वीप की 8,25,9 और 24वीं विजय में क्रम से श्री वीरसेन स्वामी, महाभद्र स्वामी, देवयश स्वामी और अजितवीर्य स्वामी-इस प्रकार 8 विहरमान विचरण कर रहे है। आभ्यंतर पुष्करार्द्ध द्वीप में 72 चन्द्र और 72 सूर्य, 6,336 महाग्रह, 2016 नक्षत्र और 48,22,200 कोटाकोटि तारे हैं। अढ़ाई द्वीप-असंख्य द्वीप-समुद्रों में से मध्य के आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध द्वीप तक अढ़ाई द्वीप और दो समुद्र प्रमाण क्षेत्र को ही अढ़ाई द्वीप या मनुष्य क्षेत्र कहते हैं। एक लाख योजन का जम्बूद्वीप, दोनों और 4 लाख योजन का लवण समुद्र, दोनों ओर 8 लाख योजन का धातकी खण्ड द्वीप, दोनों ओर 16 लाख योजन का कालोदधि समुद्र तथा दोनों ओर 16 लाख योजन का पुष्करार्ध द्वीप इस प्रकार 1 + 4 + 8 + 16 + 16 = 45 लाख योजन का अढ़ाई द्वीप है। इन अढ़ाई द्वीपों में ही 101 क्षेत्रों के मनुष्यों का निवास है। यह अढ़ाई द्वीप मनुष्यों का स्वक्षेत्र है। इसकी परिधि आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध द्वीप के समान अर्थात् 1,42,30,249 है। ____ अढ़ाई द्वीप में मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट संख्या 29 अंक प्रमाण कही है। अर्थात् जघन्य एक-एक के अंक से 29 और उत्कृष्ट 7,92,28,162, 51,42,643,37,59,351, 39,50,336 = 29 अंक प्रमाण मनुष्य रहते हैं। कहा जाता है कि अजितनाथ भगवान के समय मनुष्यों की 29 अंक प्रमाण उत्कृष्ट संख्या थी,संभवतः इस उत्कृष्ट गणना में स्त्री की योनि से उत्पन्न 9 लाख संज्ञी जीवों को भी मिला दिया है। . 92 सचित्र जैन गणितानयोग