Book Title: Jain Ganitanuyog
Author(s): Vijayshree Sadhvi
Publisher: Vijayshree Sadhvi

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Page 144
________________ 16151413 12 1110987654320 LEDIEERBOOROSODED ALLPEE R RAMETERREETagpugaOPEDY चित्र क्र. 89 है। फिर वही राहू प्रतिपदा के दिन से चन्द्रमा के प्रत्येक मार्ग में एक-एक कला छोड़ते हुए पूर्णिमा को 15 कलाएँ छोड़ देता है तब चन्द्रमा पूर्ण दिखाई देता है। उस दिन पूर्णिमा' हो जाती है तब इस पूरे पक्ष को 'शुक्ल पक्ष' कहा जाता है। (चित्र क्रमांक 89) इसी प्रकार तिथियों की व्यवस्था बनती है। चन्द्रविमान के 16 भाग करने पर उसमें प्रतिदिन जब राहू एक-एक भाग को आवृत्त करता है, वह एक भाग तिथि कहलाती है। अथवा जितने काल में चन्द्रमा का 16वाँ भाग आवृत्त या अनावृत्त हो, उस काल प्रमाण को एक तिथि समझनी चाहिये। ऐसे 15 तिथि का एक पक्ष' और 30 तिथि का एक 'चन्द्रमास' होता है। (2) पर्व राहू-यह राहू किसी-किसी समय ही अपने विमान के द्वारा चन्द्र या सूर्य के विमान को ढंकता है। उस समय संसार में ग्रहण लगा'-ऐसा कहा जाता है। यह पर्व राहू जघन्य 6 मास में चन्द्र और सूर्य को ढंकता है। अर्थात् अपने विमान की छाया से चंद्र और सूर्य के विमान को आच्छादित करता है। उत्कृष्ट से चन्द्र को 42 मास में और सूर्य की 48 वर्ष में आच्छादित करता है। (चित्र क्रमांक 90) यद्यपि यह राहू का विमान आधे योजन का है और चन्द्र विमान 56/61 योजन प्रमाण अर्थात् लगभग दुगुना है, तो वह पूर्ण रूप से चन्द्रमा को कैसे आच्छादित कर सकता है? इसका समाधान यह है कि जैसे धुएँ से पूरा आकाश मंडल व्याप्त हो जाता है उसी प्रकार राहू की अत्यन्त श्याम कांति के कारण चन्द्र धरती के लोगों को संपूर्ण आच्छादित हुआ दिखाई देता है। चन्द्रग्रहण पूर्णिमा के दिन होता है और सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन होता है। जब यह ग्रहण अमुक प्रमाण में अमुक रीति से होता है, तब उसे 'खग्रास' (खण्डग्रास) कहा जाता है। जब भरत क्षेत्र में चन्द्र या सूर्यग्रहण होता है तब संपूर्ण अढ़ाई द्वीप में रहे 132 चन्द्र और 132 सूर्यों को भी ग्रहण एक साथ में ही होता है। क्योंकि मनुष्य क्षेत्र में अमुक नक्षत्र का योग हो तब ग्रहण होता है। इससे संपूर्ण चन्द्र-सूर्य का एक ही नक्षत्र के साथ योग सभी स्थानों पर समश्रेणी में व्यवस्थित होने से सभी का ग्रहण भी एक साथ होता है। यह ग्रहण किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। ग्रहण की शुभाशुभता से लोगों में भी सुख-दुःख आदि का प्रभाव कैसा होगा, इस संबंध में भविष्य का विचार ज्योतिष शास्त्रों के द्वारा किया जाता है। चन्द्र ग्रहण पर्व राहु का विमान 880 यो. पृथ्वी चित्र क्र.90 122 सचित्र जैन गणितानुयोग

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