________________ असंख्य द्वीप-समुद्र अलोक..... ......अलोक.. स्वयंभरमण द्वीप नंदीश्वर द्वीप अलोक...... इक्षुवर द्वीप ___......अलोक धृतवर द्वीप .......अलाक... क्षीर द्वीप वारुणी द्वीप पुष्कर द्वीप खडबी. धातकी जम्बू -- द्वीप लवण कालाद लादधि सम् पुष्करवर समुद्र ..अलोक.. वारुणीवर समुह क्षीरवर समुद्र श्रीरवर घृतवर समुद्र इक्षुवर समुद्र नंदीश्वर समुद्र ....अलाक...... ......अलोक.. चित्र क्र.63 स्वयंभूरमण समुद्र सरीखा स्वभाव होने के कारण तमस्काय बादर अप्काय रूप माना गया है। यह पानी का एक विशेष प्रकार का परिणमन है। इसमें बादर अप्काय, बादर वनस्पतिकाय और त्रसजीव उत्पन्न होते हैं। | यह तमस्काय जम्बूद्वीप के बाहर तिरछे असंख्य द्वीप समुद्रों को पार करने के बाद अरूणवरद्वीप आता है, उसके बाद अरूणोदक समुद्र की आभ्यंतर वेदिका से 42 हजार योजन आगे जाने पर समुद्र के उपरितन जलान्त से एक प्रदेश की श्रेणी से प्रारम्भ होती है। अरुणोदक समुद्र चूड़ी के आकार का होने से तमस्काय भी वलयाकार रूप में ऊपर उठी है। लवणशिखा के समान समभित्ति रूप 1721 योजन एक जैसी ऊँची है, उसके बाद तिरछी विस्तृत होती हुई सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र इन चार देवलोकों को आच्छादित करके सचित्र जैन गणितानुयोग 101