________________ शिखरी वर्षधर पर्वत-यह पर्वत हैरण्यवत के उत्तर में है। ऐरावत क्षेत्र की सीमा बाँधने वाला यही पर्वत है। यह पूर्वी लवण समुद्र से पश्चिमी लवण समुद्र तक लम्बा है। इसका वर्णन 'चुल्लहिमवान्' पर्वत के सदृश है। केवल इसकी जीवा दक्षिण में और धनुपृष्ठ भाग उत्तर में है। इस पर्वत के बहुत से कूट उसी के आकार के हैं। शिखरी नामक देव का यहाँ निवास है, अतः इसे 'शिखरी पर्वत' कहा है। | उसके ग्यारह कूट बतलाये गये है-(1) सिद्धायतन कूट,(2) शिखरी कूट,(3) हैरण्यवत कूट,(4) सुवर्णकूला कूट, (5) सुरादेवी कूट,(6) रक्ता कूट,(7) लक्ष्मी कूट,(8) रक्तावती कूट,(9) इलादेवी कूट, (10) ऐरावत कूट, (11) तिगिंच्छ कूट। ये सभी कूट पाँच-पाँच सौ योजन ऊँचे है। इनके अधिष्ठातृ देवों की राजधानियाँ उत्तर में है। पुण्डरिक द्रह और सुवर्णकूला, रक्त व रक्तवती महानदियाँ-शिखरी वर्षधर पर्वत पर 'पुण्डरिक' नाम का द्रह है। जिस पर 'लक्ष्मीदेवी' सपरिवार रहती है। पद्मद्रह के समान पुण्डरीक द्रह से भी तीन नदियाँ निकली है। इनमें से 'रक्ता' और 'रक्तवती' नामक दो नदियाँ उत्तर की ओर ऐरावत क्षेत्र में होकर 14-14 हजार नदियों के परिवार से पूर्व और पश्चिम लवण समुद्र में गिरती है और तीसरी 'सुवर्णकूला' नदी दक्षिण की तरफ हैरण्यवत क्षेत्र में होकर 28 हजार नदियों के परिवार के साथ लवण समुद्र में जाकर मिल गई है। सुवर्णकूला का वर्णन रोहितांशा नदीवत् और रक्ता-रक्तवती नदी का वर्णन गंगा-सिंधु नदी के समान हैं। ऐवत क्षेत्र __ऐरवत क्षेत्र भरतक्षेत्र के समान ही कर्मभूमि क्षेत्र है। यहाँ भी अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल है। प्रत्येक काल के छह-छह आरे हैं तथा प्रत्येक सुषमा-दुषमा और दुषम-सुषम काल में कुल 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 वासुदेव एवं 9 प्रतिवासुदेव होते हैं। वर्तमान में वहाँ भी पाँचवा 'दुषम आरा' चल रहा है। भरतक्षेत्र में जैसे प्रथम भरत चक्रवर्ती थे वैसे यहाँ 'ऐरवत' चक्रवर्ती थे। 'ऐरवत नामक देव' यहाँ का अधिष्ठाता है। यह क्षेत्र मेरूपर्वत के उत्तर दिशा में है। अर्द्धचन्द्राकार है। उत्तर में लवण समुद्र से और दक्षिण में शिखरी पर्वत से इसकी सीमा बँधी है। सारांश-इस प्रकार एक लाख योजन विस्तार वाले जम्बूद्वीप में भरत आदि मुख्य 7 क्षेत्र हैं। 170 म्लेच्छ खण्ड, 34 कर्मभूमियाँ और 6 भोगभूमियाँ हैं। 4 वृत्त वैताढ्य, 34 दीर्घ वैताढ्य, 16 वक्षस्कार, चित्र-विचित्र और यमक-समक 4 युगल पर्वत, 200 कंचनगिरि, 4 गजदंत, मेरु और 6 वर्षधर पर्वत, आदि कुल मिलाकर 269 शाश्वत पर्वत हैं। 16 वक्षस्कार पर्वतों के 4-4 कूट (16x4 = ) 64 कूट, सोमनस और गंधमादन के 7-7 शिखर, रूक्मि, महाहिमवंत के 8-8 कूट, चौंतीस दीर्घ वैताढ्य, विद्युत्प्रभ, माल्यवंत, निषध, नील और नंदनवन के 9-9 कूट, हिमवंत और शिखरी पर्वत के 11-11 कूट, इस प्रकार 61 पर्वतों पर कुल 467 पर्वत कूट हैं। चौंतीस विजयों में 34 ऋषभकूट, मेरुपर्वत और जंबू वृक्ष के ऊपर 8 कूट, देवकुरु में 8, हरिकूट और हरिस्सह कूट-इस प्रकार ये 60 भूमिकूट हैं। अर्थात् ये पर्वत ऊपर के शिखर नहीं हैं अपितु सीधे ही भूमि के ऊपर शिखर होते हैं। इनमें हरिकूट और हरिस्सहकूट; जो गजदन्त पर्वत के हैं, उन्हें 'सहस्रांक कूट' के नाम से जाना जाता है। 76 AAAAAAA-सचित्र जैन गणितानुयोग 1