________________ में स्थित सीतोदा प्रपातकुण्ड में गिरकर समतल भूमि पर बहती हुई देवकुरू क्षेत्र को पार करती हुई मेरू पर्वत के निकट जाकर पलट कर गजदंत पर्वत को भेदकर पश्चिम महाविदेह से गुजरती हुई पश्चिम लवण समुद्र में मिल जाती है। इस नदी के कारण पश्चिम महाविदेह भी दो भाग में विभाजित हो जाता है-(1) उत्तर-पश्चिम महाविदेह और (2) पश्चिम-दक्षिण महाविदेह। ठीक उसी तरह नीलवंत पर्वत पर स्थित केशरीद्रह में से सीता नामक नदी निकलकर उत्तरकुरू क्षेत्र में सीताप्रपातकुण्ड' में गिरकर उत्तरकुरू क्षेत्र में से होती हुई मेरूपर्वत के पास से पलटकर गजदंत पर्वत को भेदती हुई महाविदेह क्षेत्र से गुजरती हुई पूर्व लवण समुद्र में मिल जाती है। इसके कारण पूर्व महाविदेह दो भागों में विभाजित हो जाता है। (1) उत्तर-पूर्व महाविदेह एवं (2) पूर्व-दक्षिण महाविदेह। इस तरह महाविदेह क्षेत्र चार भाग में बँटा हुआ है। इन चारों विभागो में आठ-आठ विजय हैं, अत: महाविदेह क्षेत्र में 8 x 4 = 32 विजय, 16 वक्षस्कार पर्वत और प्रत्येक विभाग में तीन-तीन अन्तरनदी होने से 4x 3 = 12 अन्तरनदियाँ है। सोलह वक्षस्कार पर्वत-वक्षस् यानि छाती, ये पर्वत आमने-सामने छाती की तरह होने से इन्हें वक्षस्कार पर्वत कहते हैं। ये पर्वत विजयों की रक्षा करते हैं इसलिए सीना तानकर खड़े हों, ऐसा लगता है। इसलिए भी इन्हें वक्षस्कार पर्वत कहते हैं। ये कुल मिलाकर जम्बूद्वीप के महाविदेह में 16 हैं। इनके नाम निम्न हैं-(1) चित्र, (2) ब्रह्मकूट, (3) नलिनी कूट, (4) एक शैल, (5) त्रिकुट, (6) वैश्रमण, (7) अंजनगिरि,(8) मातंजनगिरि,(9) अंकपाती, (10) पद्मापाती,(11) आशीविष,(12) सुखावह,(13) चन्द्र,(14) सूर्य,(15) नाग,(16) देव। सभी वक्षस्कार पर्वत दक्षिण महाविदेह में निषध पर्वत के पास से एवं उत्तर महाविदेह में नीलवंत पर्वत के पास से निकले हुए हैं। इन पर्वतों पर चार-चार कूट हैं- पहला सिद्धायतन कूट, दूसरा पर्वत के नाम का ही कूट, उसके बाद दो आस-पास की विजयों के नाम वाले दो कूट हैं। कूट सदृश नाम वाले देव इन पर निवास करते हैं। ये सभी पर्वत प्रारम्भ में 400 योजन एवं अन्त में 500 योजन ऊँचाई वाले हैं। इनकी चौड़ाई 500 योजन है एवं जमीन में 100 से 125 योजन गहरी नींव वाले हैं। बारह अन्तरनदियाँ-प्रारम्भ से अन्त तक एक समान प्रवाह वाली नदी अंतरनदी कही गई हैं। अन्य नदियाँ इनमें सम्मिलित नहीं होने से ये नदियाँ एक समान प्रवाह से बहती हैं। ये अन्तरनदियाँ 12 हैं-(1) ग्राहवती, (2) द्रहवती, (3) वेगवती, (4) तप्तजला, (5) मत्तजला, (6) उन्मत्ता, (7) क्षीरोदा, (8) सिंहस्त्रोता, (9) अन्तरवाहिनी, (10) उन्मालिनी, (11) गम्भीर मालिनी, (12) फेनमालिनी। * ये सभी नदियाँ 125 योजन चौड़े प्रवाह वाली हैं तथा 10 योजन गहरे जल वाली हैं। ये सभी नदियाँ निषध और नीलवंत पर्वत के निकट नीचे कुंड जिन्हें जन्मकुण्ड कहा गया है, उनमें से निकलती हैं, पश्चात् पूर्व महाविदेह की सभी अन्तर नदियाँ सीता महानदी में एवं पश्चिम महाविदेह की सभी अन्तर नदियाँ सितोदा महानदी में मिल जाती हैं। इन नदियों का प्रवाह इतना अधिक वेग वाला है कि मानव इन नदियों को पार करने में असमर्थ है। सचित्र जैन गणितानुयोग ATTA A A67