________________ जम्बू द्वीप की जगती अपराजित द्वार आभ्यन्तर वनखण्ड 1/2 यो. ऊँची पद्मवर वेदिका बाह्य वनखण्ड 500 धनुष चौड़ी -4 योजन चौडी जगती की दीवार लवण समुद्र गवाक्ष कटक PL योजन ऊँची विजयंत द्वार 12 योजन चौड़ी जगती की दीवार लवण समुद्र वनखण्ड-एक सदृश वृक्ष जहाँ हो वह वन' कहलाता है और अनेक जाति के उत्तमवृक्ष हो वह स्थान 'वनखण्ड' कहा जाता है। जगति के ऊपर और पद्मवरवेदिका के बाहर दोनों ओर दो विशाल हरे-भरे वनखण्ड हैं। वे कुछ कम दो योजन प्रमाण विस्तार वाले और जगति के समान ही परिधि वाले हैं। वनखण्ड के भूमिभाग अत्यंत रमणीय और समतल हैं। वहाँ पृथ्वीकायमय पंचवर्णीय घास है। वायु से मणि और तृणों के संघर्षण से स्वाभाविक कर्णप्रिय गीत जैसी ध्वनियाँ निकलती है। वनखंड के दोंनो ओर स्वच्छ व निर्मल जल से युक्त बावड़ियाँ हैं। कई छोटे-बड़े पर्वत हैं, प्रत्येक पर्वत पर कई प्रासाद है, वहाँ व्यंतर देव-देवी आमोद-प्रमोद व क्रीड़ा करते हैं। एक तरह से ये वनखण्ड वाणव्यंतर देवों के पिकनिक स्पॉट हैं। जंबूद्वीप के चार द्वार-जंबूद्वीप के चारों दिशाओं में चार द्वार हैं-(1) विजय, (2) विजयंत, (3) जयंत,(4) अपराजित। सर्वप्रथम मेरूपर्वत के पूर्व में 45 हजार योजन आगे जाने पर जंबूद्वीप के पूर्वान्त में सीता महानदी के ऊपर 'विजय' नाम का मनोरम द्वार आता है। यह द्वार 8 योजन का ऊँचा, 4 योजन का चौड़ा और चार योजन ही प्रवेश है। इसके दोनों और दो नैषेधिकाएँ (बैठने के स्थान) हैं, जो नागदन्तों की पंक्तियों, वनमालाओं की कतारों और सुंदर सुसज्जित पुतलियों से सुशोभित है। वहाँ 4 योजन ऊँचे 2 योजन लम्बे-चौड़े प्रासादावतंसक हैं। प्रसादावतंसकों के अलग-अलग रमणीय भूमिभाग पर एक योजन की लम्बी-चौड़ी और आधे योजन मोटी रत्नमयी मणिपीठिकाएँ हैं। मणिपीठिकाओं के ऊपर रमणीय एवं मुलायम लाल वस्त्रों से आच्छादित अलग-अलग सिंहासन है। (चित्र क्रमांक 29-30) विजयद्वार पर विभिन्न चित्रों से चिह्नित कुल 1,080 ध्वजाएँ हैं। विजयद्वार के आगे नौ भौम अर्थात् विशिष्ट भवन है, मध्यवर्ती पाँचवे भौम में एक बड़ा सिंहासन है। उसके पश्चिम-उत्तर (वायव्य कोण) में, उत्तर दिशा में एवं उत्तर-पूर्व दिशा (ईशान कोण) में 'विजय देव' के चार हजार सामानिक देव, सिंहासन की पूर्व दिशा में चार अग्रमहिषियाँ व उनका परिवार, दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) में आभ्यंतर परिषद के आठ हजार देव, दक्षिण में मध्यम परिषद के 10 हजार देव, दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) में बाह्य परिषदा के 12 34 सचित्र जैन गणितानुयोग 0