________________ 30 लक्षण जैन प्रकाश में वर्णित किये हैं-(1) शहर ग्राम जैसे हो जाते हैं, (2) ग्राम श्मशान जैसे हो जाते हैं, (3) श्रेष्ठ कुलों में उत्पन्न मनुष्यों को नौकरी करनी पड़ेगी, (4) राजा यमराज के समान क्रूर स्वभाव वाले होंगे, (5) कुलीन नारियाँ दुराचारिणी होंगी, (6) पुत्र, पिता की आज्ञा में नहीं रहेंगे, (7) शिष्य, गुरू की निंदा करके नीचा दिखाएँगे, (8) दुराचारी मनुष्य सुखी होंगे, (9) सज्जन, सुशील मनुष्य दुःखी रहेंगे, (10) सर्प, बिच्छू, मक्खी, मच्छर, खटमल, कीड़े-मकोड़े, आदि क्षुद्र जीवों की उत्पत्ति अधिक होगी, (11) बार-बार दुष्काल पड़ेंगे, (12) ब्राह्मण लोभी होंगे, (13) हिंसा में धर्म है, ऐसा उपदेश देने वाले पंडित बहुत होंगे, (14) धर्म में अनेक मत-मतान्तर होंगे, (15) मिथ्यात्व की वृद्धि होगी, (16) देव दर्शन दुर्लभ हो जाएँगे, (17) वैताढ्य पर्वत के विद्याधरों की विद्या का प्रभाव कम हो जाएगा, (18) दुग्ध आदि रसों की पौष्टिकता कम हो जाएगी, (19) पशु अल्पायु हो जाते हैं, (20) पाखण्डियों की पूजा अधिक होती है, (21) चौमासे में साधु-साध्वियों के योग्य क्षेत्र कम हो जाते हैं, (22) साधु की बारह और श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करने वाला कोई नहीं रहता, (23) गुरू, शिष्य को शास्त्रज्ञान नहीं देते, (24) शिष्य अविनीत होते हैं, (25) अधर्मी, हठाग्रही, धूर्त, दगाबाज और झगड़ालू जीव अधिक होते हैं, (26) धर्मात्मा, सज्जन और सरल स्वभावी लोग कम होते हैं, (27) उत्सूत्र प्ररूपणा करने वाले, लोगों को भ्रम में डालकर फँसाने वाले नाम मात्र के धर्मात्मा ज्यादा होता हैं, (28) अलग-अलग समाचारी व नियम आदि बनाकर आचार्य स्वमत की प्रशंसा और पर-मत की निंदा करेंगे। (29) म्लेच्छ राजा अधिक होंगे, (30) सच्चे धर्म पर लोगों की प्रीति कम होगी। आडंबर और प्रदर्शन में रूचि अधिक होगी। ___ उक्त सभी बातें शनैः-शनैः अधिकाधिक बढ़ती जायेंगी। 21 हजार वर्ष पूर्ण होते-होते सभी धर्मो का विच्छेद हो जाएगा। राजनीति, धर्मनीति आदि सभी नीतियाँ समाप्त हो जाएँगी। बादर अग्नि भी उस समय समाप्त हो जाएगी। सोना-चाँदी आदि धन का विच्छेद हो जाएगा लोहे की धातु रहेगी। चमड़े की मोहरें रहेंगी। ये जिनके पास होंगी वे श्रीमंत माने जाएँगे। पाँचवे आरे के अंतिम दिन शक्रेन्द्र का आसन कम्पायमान होता है। छठा आरा महादुषम काल का प्रारंभ जानकार वे लोगों को सावधान करेंगे। साधु-साध्वी धर्मात्मा लोग मोह-ममता का त्यागकर अनशन ग्रहण कर लेंगे। उसमें कतिपय लोग स्वर्ग में जाएँगे, वर्तमान में चार जीवों के एकाभवावतारी होने का उल्लेख है(1) दुपसह आचार्य, (2) फाल्गुनी साध्वी, (3) जिनदास श्रावक और (4) नागश्री श्राविका। पंचम आरे के अंत में भयंकर आँधियाँ चलने से काफी जीवन नष्ट हो जाएगा, केवल वैताढ्य पर्वत, ऋषभकूट, लवण समुद्र की खाड़ी, गंगा और सिंधु नदी शेष रहती है। पहले प्रहर में जैनधर्म दूसरे में अन्य समस्त धर्म तीसरे प्रहर में राजनीति और चौथे प्रहर में अग्नि का विच्छेद हो जाता है। (6) दुषम-दुषमा काल-पंचम आरे की पूर्णाहूति होते ही 21 हजार वर्ष का छठा आरा 'महादुषमकाल' के नाम से प्रारम्भ होता है। यह आरा मनुष्य और पशुओं के दुःखजनित हाहाकार से व्याप्त होगा। इस आरे के प्रारम्भ में धूलिमय भयंकर आँधियाँ चलेंगी, दिशाएँ धूलि से भर जाएँगी। सर्वत्र अंधकार छा जाएगा। आग, विष आदि प्राणनाशक पदार्थों की वर्षा होगी। प्रलयकालीन पवन और वर्षा के प्रभाव से विविध वनस्पतियाँ नष्ट हो जाएँगी। त्रस प्राणी तड़फ-तड़फ कर मृत्यु को प्राप्त होंगे। भरतक्षेत्र का अधिपति देव पंचम 36 सचित्र जैन गणितानुयोग 55