________________ ओर मुड़ती है, वहाँ तक अन्य 7 हजार नदियाँ भी उसमें मिल जाती हैं। इस प्रकार कुल 14 हजार नदियों के परिवार से युक्त होकर जंबूद्वीप की जगती को चीरती हुई पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। ___ गंगा महानदी अपने उद्गम स्रोत पर एक कोस अधिक 6 योजन के विस्तार (चौड़ाई) वाली व आधा कोस गहरी है। पश्चात् क्रमशः प्रमाण में विस्तृत होती हुई जब लवण समुद्र में गिरती है तब उसकी चौड़ाई बढ़ते-बढ़ते साढ़े बासठ योजन और गहराई एक योजन एक कोस होती है। अर्थात् कुण्ड से समुद्र तक उसका विस्तार व गहराई दस गुणा बढ़ जाती है। गंगा-सिंधु नदी का यह विस्तार भरत-ऐरावत में अवसर्पिणी काल के पहले और उत्सर्पिणी के अंतिम आरे (सुषम-सुषमा) की अपेक्षा से है। भरत-ऐरावत क्षेत्र में प्रकृति से ही काल परिवर्तन के कारण उनका कोई नियत स्वरूप नहीं लिखा जा सकता। दुषम-दुषम काल में इन नदियों का प्रवाह रथ के पहिये की धूरी के समान (बैलगाड़ी के मार्ग जितना) और गहराई बहुत कम रह जाती है। वर्तमान में जो गंगा-सिंधु नदियाँ हैं, वे मूल नदी हैं या अन्य किन्हीं नदियों को ये नाम दिये हैं, यह शोध का विषय है। (2) सिंधु नदी-गंगा महानदी के अनुरूप ही सिन्धु महानदी का आयाम-विस्तार है। अंतर इतना है कि सिंधु महानदी इस पद्मद्रह के पश्चिम दिग्वर्ती तोरण से निकलती है। पश्चिम में बहती हुई 'सिन्ध्वावर्त कूट' से मुड़कर दक्षिणाभिमुख होती हुई बहती है। आगे सिन्धुप्रपात कुण्ड, सिन्धुद्वीप का वर्णन गंगाप्रपात कुंड व द्वीप सदृश है। फिर नीचे तमिस्रा गुफा से होती हुई वह वैताढ्य पर्वत को चीरकर पश्चिम की ओर मुड़ती है। वहाँ 14 हजार अन्य नदियों के परिवार के साथ जंबद्गीप की जगती को विदीर्ण करती हई पश्चिमी लवणसमद्र में जाकर मिल जाती है। (3) रोहितांशा नदी-यह नदी पद्मद्रह के उत्तरी तोरण से निकलकर पर्वत पर उत्तर में 2761" योजन बहती हुई जिह्विका से होकर हिमवंत क्षेत्र के रोहितांशा प्रपातकुण्ड' जिसकी लम्बाई-चौड़ाई 120 योजन, परिधि कुछ कम 183 योजन व गहराई 10 योजन की है; उसमें वेगपूर्वक गिरती है। कुण्ड के ठीक मध्य, जल से दो कोश ऊँचा उठा हुआ 50 योजन परिधि वाला रोहितांश द्वीप है, उसमें एक पल्योपम की स्थिति वाली ऋद्धिशालीनि 'रोहितांशा'देवी' का आवास है। __रोहितांशा प्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से रोहितांशा महानदी आगे हैमवतक्षेत्र की ओर बढ़ती है। वहाँ चौदह हजार नदियाँ से आपूर्ण होती हुई वह शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत के आधा योजन दूर रहने पर पश्चिम की ओर मुड़ती है और हैमवत क्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई आगे बढ़ती है। तत्पश्चात् अट्ठाईस हजार नदियों के परिवार सहित नीचे की ओर जगती को चीरकर पश्चिम-दिग्वर्ती लवणसमद्र में मिल जाती है। रोहितांशा महानदी जहाँ से निकलती है, वहाँ उसका विस्तार साढ़े बारह योजन है, गहराई एक कोश है। तत्पश्चात् वह मात्रा में क्रमशः बढ़ती जाती है। समुद्र में मिलने के स्थान पर उसका विस्तार एक सौ पच्चीस योजन होता है, गहराई अढ़ाई योजन होती है। यह नदी अपने दोनों ओर दो पद्मवर वेदिकाओं तथा दो वनखण्डों से घिरी हुई है। चुल्लहिमवान पर्वत के 11 कूट-चुल्लहिमवान पर्वत के 11 कूट हैं-(1) सिद्धायतन कूट, (2) चुल्लहिमवान कूट, (3) भरतकूट, (4) इलादेवी कूट, (5) गंगादेवी कूट, (6) श्रीकूट, (7) रोहितांशा कूट,(8) सिन्धुदेवी कूट,(9) सुरादेवी कूट,(10) हैमवत कूट,(11) वैश्रवणकूट। सचित्र जैन गणितानुयोग 41