________________ 1चकाल 2 छचन ESCERE (10) वर्धकिरत्न-यह मुहूर्त भर में 12 योजन लम्बा, 9 योजन चौड़ा ऐसा 42 खंड का महल तैयार कर देता है। साथ ही पौषधशाला, रथशाला, घुड़साल, पाकशाला, बाजार आदि सब सामग्री से युक्त नगर तक बना देता है। चक्रवर्ती षट्खण्ड विजय के समय अपने समस्त परिवार के साथ उसमें निवास करते हैं। (11) पुरोहितरत्न-यह शुभ मुहुर्त बतलाता है। लक्षण, हस्तरेखा आदि (सामुद्रिक), व्यंजन (तिल, मसा आदि) स्वप्न, अंग का फड़कना इत्यादि सभी तरह के शुभ-अशुभ फल बताता है, शान्तिपाठ जप इत्यादि करता है। (12) स्त्रीरत्न-(श्रीदेवी) यह वैताढ्यपर्वत की उत्तर श्रेणी के स्वामी विद्याधर की पुत्री होती है। यह संपूर्ण भरतक्षेत्र में अद्वितीय सुरूपवती और सदैव कुमारिका के समान युवती रहती है। इसका देहमान चक्रवर्ती के देहमान से चार अंगुल कम होता है। यह पुत्र प्रसव नहीं करती है। अंत समय तक भोगों में लिप्त रहकर यह आयुष्य पूर्ण कर छठी नरक में जाती है। (13) अश्वरत्न-(कमलापति घोड़ा) यह पूंछ से मुख तक 108 अंगुल लम्बा, खुर से कान तक 80 अंगुल ऊँचा, क्षण भर में अभीष्ट स्थान पर पहुँचा देने वाला और विजयप्रद होता है। (14) गजरत्न-यह चक्रवर्ती से दुगुना चक्रवर्ती के चौदह रत्न ऊँचा होता है। महासौभाग्यशील, कार्यदक्ष और अत्यन्त सुन्दर होता है। (चित्र क्रमांक 38) चक्रवर्ती के 14 रत्नों में चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न तथा छत्ररत्न ये 4 एकेन्द्रिय रत्न आयुधशाला-शस्त्रागार में उत्पन्न होते हैं। चर्मरत्न, मणिरत्न, काकिणी रत्न श्री गृह-भण्डारागार में उत्पन्न होते हैं। सेनापति रत्न, गाथापति रत्न, वर्धकि रत्न, तथा पुरोहित रत्न, ये चार अयोध्या राजधानी में उत्पन्न होते हैं। स्त्रीरत्न उत्तर विद्याधर श्रेणी में उत्पन्न होती है। अश्व और गजरत्न वैताढ्य पर्वत की तलहटी में उत्पन्न होते हैं। चक्रवर्ती की नौ निधियाँ (1) नैसर्प निधि-गाँव, नगर, भवन आदि का निर्माण व सेना का पड़ाव डालने के लिये सामग्री और विधि प्रदान करती है। (2) पाण्डुक निधि-तोलने और मापने के उपकरण तथा चाँवल आदि धान्यों को उत्पन्न करने वाली। दण्डन पणियल 6 काकिणनि चर्मरन 9 गाथापतिरल 48 सेनापतिरन 10 वर्षकिरला पुरोहितरव 12 स्त्रीरल 13 अश्वाला 14 जान चित्र क्र.38 सचित्र जैन गणितानुयोग 47