________________
शोधसंस्थान, हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी के पूर्व निदेशक, अनेक ग्रन्थों के लेखक तथा चिन्तक डॉ. सागरमल जी जैन आदि से इस विषय में विशेष रूप से विचारविमर्श किया, उन्हें यह विषय बहुत ही उपयोगी प्रतीत हुआ और उन्होंने मुझे इस ओर गतिशील रहने हेतु विशेष प्रेरित किया। - प्रात: स्मरणीया, परम पूजनीया गुरुवर्या श्री एवं विद्वद्जनों से अभिप्रेरित होकर मैंने अपना कार्य प्रारम्भ किया। मेरे विषय से सम्बद्ध जैन, वैदिक, बौद्ध आदि विभिन्न परम्पराओं के साहित्य का संग्रह किया तथा उनका सूक्ष्मता से अध्ययन प्रारम्भ किया।
मुझे यह व्यक्त करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता होती है कि विद्वद्वर्य डॉ. सागरमलजी जैन ने मुझे इस कार्य में निर्देशन देना स्वीकार किया। उनके निर्देशन में मेरा कार्य गतिशील होता गया। अपने गृहीत विषय में मुझे नये-नये तथ्य मिलते गये। मुझे अपने अध्ययन और शोध को आगे बढ़ाने में एक और सुन्दर सुयोग प्राप्त हुआ। विद्वमूर्धन्य डॉ. छगनलाल जी शास्त्री का भी यथेष्ट सहयोग और मार्ग-दर्शन प्राप्त हआ। उनके गहन अध्ययन एवं अनुभूतिपरक चिन्तन से मुझे बहुत बल मिला। इन दोनों विद्वानों ने जिस आदर, सद्भावना और आत्मीयता के साथ इस शोधकार्य में सम्बल प्रदान किया वह सर्वथा अविस्मरणीय है। मैंने अपने शोधकार्य को भारतीय संस्कृति की त्रिवेणी-जैन, वैदिक, बौद्ध धाराओं के निर्मल स्रोत से प्रारम्भ किया। उनमें उच्छलित होती ध्यान मूलक उर्मियों का संस्पर्श करते हुए मैंने तद्विषयक सूक्ष्म तत्त्वों को खोजने का प्रयास किया। जैन आगम, दर्शन, तत्सम्बन्धी वाङ्मय, बौद्ध ग्रन्थ, उपनिषद्, पुराण, महाभारत और अनेकानेक ग्रन्थों में आये ध्यान विषयक विवेचन को उपस्थापित करने का प्रयास किया।
आचार्य हरिभद्र, शुभचन्द्र, हेमचन्द्र, उपाध्याय यशोविजय आदि अनेक जैन मनीषियों द्वारा रचित ध्यान योग सम्बन्धी ग्रन्थों का परिशीलन कर ध्यान विषयक महत्त्वपूर्ण सन्दर्भो का परिशीलन किया तथा उन्हें समीक्षात्मक दृष्टि से रचने का प्रयास किया। आगे बढ़ते हुए ऐतिहासिक कालक्रम के साथ इस ध्यान विषयक साहित्यिक रचना में जो विश्रामस्थल आये तथा उनमें जो तद्विषयक साहित्यिक सर्जन के रूप में नवाभिनव उन्मेष ध्यान योग के साथ जुड़ते गये उनका भी मूल्यांकन किया तथा वर्तमान में संप्रवृत्त जैन ध्यान विधाओं का हार्द प्रस्तुत करते हुए तुलनात्मक तथा समीक्षात्मक दृष्टि से उनकी विशेषताओं पर अपने विचार प्रस्तुत किये। अन्त में, उपसंहार, निष्कर्ष एवं उपलब्धि के रूप में मैंने उन तथ्यों की ओर इंगित किया है जो आध्यात्मिक दृष्टि से तो कल्याणकारी हैं ही, सांसारिक, पारिवारिक, सामाजिक एवं वैयक्तिक जीवन में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org