________________
समय मुनि वन में काउसग्ग ध्यान कर रहे थे उस वक्त कमठ का जीव नरक से निकलकर सिंह हुआ। सुवर्णबाहु राजर्षि को देखा, वैर वशात् क्रोधातुर होकर एक छलांग मारी और मुनि को पकडकर चीर दिया। मुनि वहीं काल कर दिये।
* नवमाँ भव :- नवमें भव में मरुभूति का जीव प्राणत नाम के दसमें देवलोक में बीस सागरोपम की आयुष्यवाला देव हुआ और कमठ का जीव सिंह मरकर चौथी नरक दस सागरोपम की आयुष्य वाला नारकी हुआ। * दसमां भव :- दसवें भव में मरुभूति का जीव देवलोक से च्यवन कर महारानी वामादेवी की रत्नकुक्षि में अवतरे और कमठ के जीव ने एक दरिद्र ब्राह्मण के घर में जन्म लिया।
* च्यवन कल्याणक *
आर्हत् पार्श्वनाथ तीन ज्ञान सहित प्राणत देवलोक से च्यवनकर चैत्र कृष्णा चतुर्थी के दिन राजा अश्वसेन की महारानी वामादेवी के कुक्षि में पधारें। भगवान का गर्भ स्थापित होने के बाद माता वामाराणी मध्य रात्रि में 1. गज 2. वृषभ 3. सिंह 4. लक्ष्मी देवी 5. पुष्पमाला 6. चंद्र 7. सूर्य 8. ध्वजा 9. पूर्णकलश 10. पद्म सरोवर 11. क्षीर समुद्र 12. देव विमान 13. रत्नो की राशी 14. निधूम अग्नि चौदह महास्वप्नों को देखती है, इन्द्रादि देवों ने च्यवन कल्याणक
मनाया।
* जन्म कल्याणक * गर्भकाल पुरा होने पर पौष कृष्ण दशमी की मध्यरात्री में वाराणसी के राजा अश्वसेन की महारानी वामादेवी की कुक्षि से भगवान पार्श्वनाथ का जन्म हुआ।
* जन्म कल्याणक का उत्सव (दिक्कुमारिकोत्सव) * शाश्वतनियमानुसार जन्म के पुण्य - प्रभाव से प्रसूति - कार्य की अधिकारिणी 56 दिक्कुमारिका देवियों के सिंहासन डोलने पर विशिष्ट ज्ञान से भगवान के जन्मप्रसंग को जानकर अपना कर्तव्य पालन करने के लिए वे देवियां जन्म की रात्री में ही देवी शक्ति से शीघ्र ही जन्मस्थान पर आती हैं और भगवान तथा उनकी माता को नमस्कार करके भव्य कदलीगृहों में दोनों की स्नान, विलेपन, वस्त्रालंकार - धारण आदि से भक्ति करके भगवान के गुणगानादि कर शीघ्र विदा होती है।
3 0000000000
19 ..XXXAOKAR
For Personal & Private Use Only
Jain Education Intemational
www.jainelibrary.org