Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 61
________________ * मार्गानुसारी जीवन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र वस्तुतः मोक्ष का मार्ग, मोक्ष का साधन है। उस मार्ग की और अग्रसर होनेवाला, उसका अनुसरण करनेवाला, उसे जीने के लिए सहाय रुप बननेवाला जीवन मार्गानुसारी जीवन कहलाता है। आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने धर्मबिंदु ग्रंथ में तथा कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य के योगशास्त्र में मार्गानुसारी जीवन के 35 गुण बताये हैं। इन गुणों को सरलता पूर्वक याद करने के लिए इन्हें हम चार विभागों में विभक्त करते हैं। 1. जीवन में करने योग्य 11 कर्तव्य 2. 8 दोषों का त्याग 3. 8 गुणों का आदर 4. 8 साधना 1. जीवन में करने योग्य 11 कर्तव्य * न्याय संपन्न वैभव : गृहस्थ जीवन निर्वाह करने के लिए न्याय और नीतिपूर्वक धन का उपार्जन करें। जिस स्वामी के आश्रित अपनी आजीविका चलती हो उसके प्रति द्रोह करना, उसको जान बुझकर हानि पहुँचाना उसकी संपत्ति को हडप लेना, मित्र के प्रति द्रोह करना, विश्वासघात करना, चोरी करना, व्यापारिक रीति-नीति की अवहेलना करना, जुआ - सट्टा करना, अमर्यादित मुनाफाखोरी और कालाबाजारी और निंदनीय अनैतिक साधनों का त्याग कर अपने हित वर्ण के अनुसार सदाचार और न्याय नीति से ही उपार्जित धन वैभव से संपन्न होना चाहिए। - * आयोचित व्यय : गृहस्थ को अपनी आय (कमाई) के अनुसार ही खर्च करना चाहिए। आय से अधिक धर्म को भूलकर अनुचित खर्च न करना यह " उचित खर्च" नाम दूसरा कर्तव्य है। कमाई के चार भागों में से एक भाग आश्रितों के भरण पोषण में, दूसरा भाग व्यापार में, तीसरा भाग धर्मकार्यों और उपयोग में और चौथा भाग भंडार (बचत खाते) में रखना चाहिए। इसे इसे इसे से उसे इसे से इसे इसे इसे इसे ले ने इसे इसे से बने व Jain Education International पेगस्था, ने परिश, परिमाण की मर्यादा से अधिक • उपार्जित एन की पृष्ट क्षेत्रों में सद्व्यय किया। 55 For Personal & Private Use Only ******* - www.jainelibrary.org

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