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मि - मेरा
दुक्कडं - पाप मिच्छा - मिथ्या (निष्फल) हो
सामाइयं - सामायिक का सम्मं काएणं - सम्यक् काया से
न फासियं - स्पर्श न किया हो न पालियं - पालन न किया हो
न सोहियं - शुद्धतापूर्वक न की हो न किद्रियं - कीर्तन न किया हो
न आराहियं - आराधन न किया हो आणाए - आज्ञानुसार
अणुपालियं न भवइ - पालन न किया हो तस्स - उससे होने वाला
मिच्छामि दुक्कडं - मेरा पाप मिथ्या हो सामायिक में दस मन के, दस वचन के, बारह काया के, इन बत्तीस दोषों में से कोई दोष लगा हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं।
* सामाइय - पारण - सुत्तं *
(सामायिक पारने का सूत्र) सामाइयवय - जुत्तो, जाव मणे होइ नियम - संजुत्तो।
छिन्नई असुहं कम्मं, सामाइय जत्तिया वारा ||1|| सामाइअंमि उ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा।
एएण कारणेणं, बहुसो सामाइयं कुज्जा ।।2।। मैंने सामायिक विधि से लिया, विधि से पूर्ण किया,
विधि में कोई अविधि हुई हो तो मिच्छामि दुक्कडं।।3।। दस मनके, दस वचनके, बारह काय के कुल बत्तीस दोषों में से कोई दोष लगा हो तो मिच्छामि दुक्कडं।।
* शब्दार्थ * सामाइयवय - जुत्तो - सामायिक व्रत से युक्त। जाव - जहाँ तक। मणे - मन में।
होई - होता है, करता है। नियम - संजुत्तो - नियम से युक्त, नियम रखकर। छिन्नई - काटता है, नाश करता है। असुहं - अशुभ।
कम्मं - कर्म का। सामाइय- सामायिक।
जत्तिया वारा - जितनी बार। सामाइयम्मि - सामायिक।
उ - तो। कए - करने पर।
समणो - साधु। इव - जैसा।
सावओ - श्रावक। हवइ - होता है।
जम्हा - जिस कारण से। एएण कारणेणं - इस कारण से, इसलिए। बहुसो - अनेक बार। सामाइयं - सामायिक।
कुज्जा - करना चाहिए।
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