Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 94
________________ विधि - निश्चित पद्धति शेष स्पष्ट है। भावार्थ :- इस सूत्र द्वारा सामायिक पूर्ण करने में आती है और शेष का अर्थ स्पष्ट है। आगे भी सामायिक करने की भावना हो, इसलिए इसमें सामायिक के लाभ प्रदर्शित किये हैं। साथ ही सामायिक 32 दोषों रहित होकर करना चाहिए, यह बात भी इसमें बतलाई है। * सामायिक के 32 दोष * मन के दस दोषः 1. शत्रु को देखकर उसपर द्वेष करना। 2. अविवेक पूर्वक चिंतन करना। 3. सूत्र पाठों के अर्थ का चिंतन न करना। 4. मन में अद्वेग धारण करना। 5. यश की इच्छा करना। 6. विनय न करना। 7. भय करना। 8. व्यापार का चिंतन करना। 9. सामायिक के फल का संदेह करना। 10. तथा निदान-नियाणा करना अर्थात् सांसारिक फल की इच्छा रखकर धर्म क्रिया करना। वचन के दस दोष :1.खराब वचन बोलना । 2. हुंकार करना । 3. पाप कार्य का आदेश देना । 4. चुगली करना। 5. कलह करना। 6. क्षेमकुशल पूछना, आगत स्वागत करना। 7.गाली देना। 8. बालक को खेलाना। 9. विकथा करना। 10. तथा हंसी - ठट्ठा करना। काया के बारह दोष :1. आसन चपल अस्थिर करना। 2. इधर उधर देखा (देखते रहना) करना। 3. सावध कर्म करना। 4. आलस्य मरोड़ना, अंगडाई लेना। 5. अविनय पूर्वक बैठना। 6. दीवाल आदि का सहारा लेकर बैठना। 7. शरीर पर मैल उताराना। 8. खुजलाना। 9. पग पर पग चढाकर बैठना अथवा खडा होना। 10. शरीर को नंगा करना। 11. जंतुओं के उपद्रव से डरकर शरीर को ढांकना। 12. निद्रा लेना। __ इस प्रकार 10 मन के, 10 वचन के और 12 काया के कुल मिलाकर 32 दोष हुए। सामायिक में इन दोषों का त्याग करना चाहिए। wwws1881 For Personal & Private Use Only Jain Education International ooooAAAAAAAAAA www.jainelibrary.org

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