Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust
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* सामायिक तथा पौषध पारणे का सूत्र * भयवं ! दसण्णभद्दो सुदंसणो थूलिभद्द - वयरो य। सफली कय गिहचाया, साहू एवं विहा हुंति ।।1।। साहुण वंदणेण नासइ पावं, असंकिया भावा। फासुअ - दाणे निज्जर, अभिग्गहो नाणमाइणं ।।2।। छउमत्थो मूढमणो, कित्तिय मित्तंपि संभरइ जीवो। जं च न संभरामि अहं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ।।3।। जं जं मणेण चिंतियं, असुहं वायाइ भासियं किंचि । असुहं काएण कयं, मिच्छामि दुक्कडं तस्स ।।4।। सामाइय पोसह संट्ठियस्स, जीवस्स जाइ जो कालो। सो सफलो बोधव्वो, से सो संसार फल हेउ ।।5।।
* शब्दार्थ * भयवं - हे भगवन्, पूज्य !
दसण्णभद्दो - दशार्णभद्र। सुदंसणो - सुदर्शन सेठ।
थूलिभद्द - स्थूलिभद्र। य - और।
वयरो - वज्रस्वामिने । सफलिकय - सफल किया है।
गिहचाया - घर का त्याग (दीक्षा जिन्होंने) साहू - साधु ।
एवं विहा - इस प्रकार के। हुति - होते हैं।
साहूण - साधुओं को। वंदणेण - वंदन करने से।
नासइ - नष्ट होते हैं। पावं - पाप।
असंकिया - भावा - शंका रहित भाव, निश्चय से। फासुअ - प्रासुक आहार आदि को।
दाणे - देने से। निज्जर - निर्जरा।
अभिग्गहो - अभिग्रह। नाणमाइणं - ज्ञानादि गुणों का।
छउमत्थो - छद्मस्थ घाति कर्म सहित। मूढमणो - मूढ मन वाले।
कित्तिय - कितना। मित्तंपि - मात्र भी।
संभरई - याद कर सकते हैं। जीवो - जीव।
जं - जो। च - और।
न - नहीं। संभरामि - मैं स्मरण कर सकता हूँ।
मिच्छामि - मेरा मिथ्या हो। दुक्कडं - पाप।
तस्स - उसका। मणेण - चिंतियं - मन से चिंतन किया हो। असुहं - अशुभ। वायाइ भासियं - वचन से बोला हो।
किंचि - कुछ भी। काएण कयं - शरीर से किया हो।
असुहं - अशुभ। सामाइय - सामायिक में।
पोसह - पौषध में। (देसावगासिय) - देशावेकाशिक में।
संठियस्स - रहे हुए। जीवस्स - जीव को।
जाइ -जाता है, व्यतीत होता है।
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