Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 90
________________ * सामायिक (करेमिभंते) सूत्र * करेमि भंते ! सामाइयं, सावज्जं जोगं पच्चक्खामि | जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं, मणेणं वायाए कायेणं, न करेमि, न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। * शब्दार्थ * करेमि - करता हूँ। भंते - हे भगवान् ! हे पूज्य ! सामाइयं - सामायिक। सावज्जं - पापवाली। जोगं - प्रवृत्ति का व्यापार का। पच्चक्खामि - प्रत्याख्यान करता हूँ। प्रतिज्ञा पूर्वक छोडता हूँ जाव - जब तक। नियमं - इस नियम का। पज्जुवासामि - पर्युपासन करता रहूँगा मैं सेवन करता रहूँगा। तिविहेणं - तीन प्रकार के (योग से) मणेणं - मन से। वाया ए - वाणी से। काएणं - शरीर से। दुविहं - दो प्रकार से। न करेमि - न करुंगा न कारवेमि - न कराऊंगा। भंते - हे भगवन्। तस्स - उस पापवाली प्रवृत्ति का। पडिक्कमामि - मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, मैं निवृत होता हूँ। निंदामि - (उसकी) निंदा करता हूँ। गरिहामि - (और) यहाँ गुरु की साक्षी में विशेष निंदा करता हूँ। अप्पाणं - आत्मा को (उस पाप व्यापार से)। वोसिरामि - हटाता हूँ। (छोड देता हूँ) भावार्थ : हे पूज्य ! मैं सामायिक व्रत ग्रहण करता हूँ। अतः पाप वाली प्रवृत्ति को प्रतिज्ञा पूर्वक छोड़ देता हूँ। जब तक मैं इस नियम का सेवन (पालन) करता रहूँगा तब तक मन, वाणी और शरीर इन तीन योगों से पाप व्यापार को न करुंगा न कराऊंगा। हे पूज्य ! पूर्वकृत पाप वाली प्रवृत्ति से मैं निवृत्ति होता हूँ, अपने हृदय से उसे बुरा समझकर उसकी निंदा करता हूँ और आप (गुरु) के सामने विशेष रुप से निंदा करता हूँ। अब मैं अपनी आत्मा को पाप क्रिया से हटाता हूँ। नोट : स्थानकवासी परंपरा में मणेणं, वायाए, काएणं की जगह मणसा, वयसा और कायसा शब्द का प्रयोग मिलता है। .....184MARA JET E cation international 4A For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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