Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 88
________________ * लोगस्स सूत्र * ___ लोगस्स उज्जोअगरे, धम्मतित्थयरे जिणे। अरिहंते कित्तइस्सं, चउवीसंपि केवली । उसभमजिअं च वंदे, संभवमभिणंदण च सुमई च। पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पह वंदे । सुविहिं च पुप्फदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुजं च। विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि | कुंथु अरं च मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च। वंदामि रिट्ठनेमि, पासं तह वद्धमाणं च । एवं मए अभिथुआ, विहुयरयमला पहीणजरमरणा। चउवीसंपि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु । कित्तिय वंदियमहिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा। आरुग्ग बोहिलाभं, समाहिवरमुत्तमं दिंतु | चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा। सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु। * शब्दार्थ * लोगस्स - लोक में, चौदह राज लोक में। उज्जोअगरे - उद्योत - प्रकाश करने वालों की। धम्मतित्थयरे -धर्मरुप तीर्थ स्थापन करने वालों की। जिणे - जिनों की, राग - द्वेष को जीतने वालों की अरिहंते - अरिहंतों की, त्रिलोक पूज्यों की। कित्तइस्सं - मैं स्तुति करुंगा। (करता हूँ) चउवीसंपि - चौवीसों। केवली - केवल ज्ञानियों की। उसभं च - 1. श्री ऋषभदेव को तथा। अजिअं - 2. श्री अजितनाथ को वंदे - वंदन करता हूँ संभवं - 3. श्री संभवनाथ को अभिणंदणं - 4. श्री अभिनंदन को। च - तथा। सुमइं च - 5. श्री सुमतिनाथ को तथा। पउमप्पहं - 6. श्री पद्मप्रभ को। सुपासं - 7. श्री सुपार्श्वनाथ को। जिणं च - तथा राग - द्वेष को जीतने वाले। चंदप्पहं - 8. श्री चंद्रप्रभ को। वंदे - वंदन करता हूँ। सुविहिं च - 9. श्री सुविधिनाथ जिनका दूसरा नाम। पुप्फदंतं - श्री पुष्पदंत है उनको। सीअल - 10. श्री शीतलनाथ को। सिज्जंस - 11. श्री श्रेयांसनाथ को। वासुपुजं च - 12. श्री वासुपूज्य स्वामी को तथा। विमलं - 13. श्री विमलनाथ को। अणंतं च - 14. श्री अनंतनाथ को तथा। जिणं - राग द्वेष को जीतने वाले। धम्म - 15. श्री धर्मनाथ को। संतिंच - तथा श्री शांतीनाथ को। वंदामि - मैं वंदन करता हूँ। कुंथु - 17. श्री कुंथुनाथ को। अरं च - 18. श्री अरनाथ को तथा। मल्लिं - 19. श्री मल्लिनाथ को। ___ मुणिसुव्वयं - 20. श्री मुनिसुव्रतस्वामी को। नमिजिणं च - 21. श्री नमिनाथ जिनेश्वर को तथा वंदामि - मैं वंदन करता हूँ। रट्टिनेमि - 22. श्री अरिष्टनेमि तथा नेमिनाथ को। पासं - 23. श्री पार्श्वनाथ तह - तथा। वद्धमाणंच - 24. श्री वर्धमान स्वामी अर्थात् महावीर स्वामी को। एव मए - इस प्रकार मेरे द्वारा। अभिथुआ - नाम पूर्वक स्तुति किये गये। _ विय-रय-मला - धो डाला कर्म रज का मैल जिन्होंने। पहीण - जर - मरणा - जरा तथा मरण से मुक्त। चउवीसं पि - चौवीसों। .. . 82 AAAO El Giornata For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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