Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 68
________________ जो गृहस्थ बुद्धि के इन आठ गुणों से संपन्न होता है वह अकल्याण मार्ग में कभी भी प्रवृत्ति नहीं कर सकता। वह असदाचार से दूर रहकर सदाचार में ही प्रवृत्ति करेगा। * संपत्ति के अनुसार वेशधारण : वेश से व्यक्तित्व की पहचान होती है। सद्गृहस्थ को अपनी संपत्ति, स्थिति, वय, वैभव, देश, काल और कुलाचार को ध्यान में रखकर वस्त्र अलंकार आदि धारण करना चाहिए। उक्त मर्यादाओं को ध्यान में न रखने से लोक में उपहास का पात्र होना पडता है। आर्थिक स्थिति ठीक होने पर भी कंजूसी के कारण फटे - पुराने, मैले कपडे धारण करना अपनी हंसी कराना ही है। इसी तरह वैभव बनाने के लिए चटकीले - भडकीले वस्त्र अलंकार आदि धारण करना भी अनुचित है। विवेकवान सद्गृहस्थ के लिए अपनी वेशभूषा सात्विक, स्वच्छ एवं सुरुचि पूर्ण रखनी चाहिए। * शिष्टाचार प्रशंसक : शिष्ट पुरुषों के आचार का प्रशंसक रहना। शिष्टपुरुषों के आचार यह हैं 1. लोक में निंदा हो ऐसा कार्य न करना। 2. दीन दुःखियों की सहायता करना 3. उपकारी के उपकारों को न भूला 4. निंदा त्याग 5. दूसरों की प्रार्थना को भंग नहीं करना 6. गुण - प्रशंसा 7. आपत्ति में धैर्य 8. संपत्ति में नम्रता 9. अवसरोचित हित - मित - प्रिय वचन 10. सत्यप्रतिज्ञा 11. आयोचित व्यय 12. सत्कार्य का आग्रह 13. बहुनिद्रा, विषयकषाय विकथादि प्रमादों का त्याग 14. औचित्य पालन आदि शिष्टपुरुषों के आचार हैं। शिष्टपुरुषों की प्रशंसा करने से व्यक्ति अपने जीवन में भी उनके संस्कार को प्राप्त कर सकता है। ___ इस प्रकार धार्मिक जीवन के प्रारंभ में मार्गानुसारिका के 35 गुणों से जीवन ओतप्रोत बनना आवश्यक है क्योंकि हमारा लक्ष्य श्रावक धर्म का पालन करते हुए संसार त्यागकर साधु जीवन जीने का है, वह इन गुणों के अभाव में प्राप्त नहीं हो सकता है। . . . XXXXXXXXXXXX 62HRPORAN Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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