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ॐ वेदनीय कम र
* वेदनीय कर्म * जो कर्म आत्मा को सुख दुख का अनुभव कराता है या जिस कर्म के द्वारा जीव को सांसारिक इन्द्रिय जन्य सुख - दुख का अनुभव हो वह वेदनीय कर्म कहलाता है। वेदनीय कर्म की तुलना शहद से लिपटी हुई तलवार से की गई है। तलवार के धार पर लगे हुए शहद को चाटने पर पहले तो मधुर लगेगा लेकिन बाद में उसकी तेजधार से जीभ कट जाने से असहाय दुःख भोगना पडता है वैसे ही सातावेदनीय कर्म द्वारा सुख का अनुभव करते हुए इसके परिणाम स्वरुप बाद में दुख का अनुभव करना पडता है।
* वेदनीय कर्म के 2 भेद हैं :
* सातावेदनीय :- जिस कर्म के उदय से आत्मा यि जानियत का अनशन तो तिजीत सुरव पूर्वक भोजन
" साता वेदनीय को आरोग्य धन विषयोभोग द्वारा शाता का अनुभव हो।
असावा वेदनीय रोग से पीड़ित
PA सुरव पूर्वक शयन ll
* आसाता वेदनीय :- जिस कर्म के उदय से शारीरिक कष्ट भार ढोना
आत्मा को अनुकूल विषयों की अप्राप्ति और प्रतिकूल
इन्द्रियविषयों की प्रप्ति में दुख का अनुभव होता है उसे असातावेदनीय कर्म कहते हैं।
* सातावेदनीय कर्मबंध के कारण :- कर्मग्रंथ में सातावेदनीय के 8 कारण बताए गए हैं।
गुरुभक्ति :- माता - पिता, धर्माचार्य, शिक्षागुरु, अध्यापक आदि की सेवा - भक्ति या आदर सत्कार करना। जैसे गणधर गौतमस्वामी ने अपने परम गुरु भगवान महावीर के प्रति असीम श्रद्धा भक्ति रखी थी।
आहार दान
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