Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 66
________________ पुणीजनों का सम्मान करना * गुण का पक्षपाती: सद्गृहस्थ गुणों का पक्षपाती होता है। गुणीजन जब भी उसके संपर्क में आए वह उनके साथ सौजन्य, दाक्षिण्य, औदार्य का व्यवहार करें। समय समय पर उनका बहुमान करें, उन्हें प्रतिष्ठा दे, उनको प्रोत्साहित करें, उनके कार्यों में IPI सहायक बनें। 4.*8 साधना* * कृतज्ञता: देव-गुरु, माता - पिता आदि किसी का भी उपकार नहीं भूलना चाहिए। उनके उपकारों का स्मरण करते हुए यथाशक्ति उनका बदला चुकाने को तत्पर रहना चाहिए। * परोपकार करने मे तत्पर : यथाशक्य दूसरों का निस्वार्थ भाव से उपकार करना। व्यक्ति को केवल अपने ही स्वार्थ में रचाभचा नहीं रहना चाहिए। स्वार्थ तो प्राणिमात्र में विद्यमान है। पशु - पक्षी भी अपने स्वार्थ साधन में लीन रहते हैं। मानव की यही विशेषता है कि वह स्वयं की धर्म - अर्थ - काम - मोक्ष साधना के साथ अन्यों की साधना में भी सहायक बन सकता है। परोपकार में तत्पर मनुष्य सभी के नेत्रों में अमृतांजन के समान होता है। दान * दयालुता : दुःखी जीवों का दुःख दूर करने की अभिलाषा दया कहलाती है। व्यक्ति को जैसे अपने प्राण प्रिय है, वैसे ही सभी जीवों को भी अपने प्राण प्रिय है। जिसका हृदय करुणा, दया कोमलता से ग्रहस्त है वही व्यक्ति धर्म का आचरण कर सकता है। हृदय को कोमल रखते हुए जहाँ तक हो सके, तन - मन धन से दूसरों पर दया करते रहना चाहिए। ** 60 Jain Education International For Personal & Private Use Only 8 . . ___www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110