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* प्रसिद्ध देशाचार का पालक :
अपनी मान मर्यादा के अनुरुप उचित वेश भूषा, भोजन, भाषा आदि धारण करें। अत्याधिक तडकीले भडकीले, अंगों का प्रदर्शन हो तथा देखनेवालों को मोह व विकार भाव पैदा हो, ऐसे वस्त्रों को कभी नहीं पहनना चाहिए।
* समानकुल और शीलवाले किंतु भिन्नगोत्रीय के साथ विवाह संबंध :
कहीं विवाहोत्सव
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* सद्गृहस्थ के रहने का स्थान :
जो मकान अधिक द्वारवाला,
ज्यादा ऊँचा, एकदम खुला चोर डाकुओं के भय से युक्त न हो तथा
अच्छे पडोसी हो ऐसे मकान में सद्गृहस्थ को रहना चाहिए। * अजीर्ण के समय भोजन छोड देना :
पिता, दादा आदि पूर्वजों की वंश परंपरा खानदानी हो, मदिरा, मांस, दुर्व्यसनों के त्याग रुपी शील- सदाचार भी समान हो, किंतु भिन्न गोत्रीय के साथ आचार संपन्न परिवार में ही विवाह संबंध करना चाहिए।
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पहले किया हुआ भोजन जब
तक हजम न हो तब तक नया
भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि अजीर्ण समस्त रोगों का मूल है।
* समय पर पथ्य भोजन करना
भूख लगने पर आसक्ति रहित,
संतुलित एवं सात्विक अपनी
प्रकृति, रुचि एंव खुराक के अनुसार उचित मात्रा में भोजन करना चाहिए। भक्ष्य - अभक्ष्य का भी विवेक रखें। तामसी, विकारोत्पादक एवं उत्तेजक पदार्थों का सर्वथा त्याग करना चाहिए।
* माता-पिता का पूजक
उत्तम पुरुष वहीं माना जाता है जो माता पिता को नमस्कार करता हो, उनको परलोक हितकारी धर्मनुष्ठान में लगाता हो, उनका सत्कार सम्मान करता हो, उनको पहले भोजन करवाकर फिर स्वयं भोजन करता हो तथा उनकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करता हो ।
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प्रतिभोजनस्वास्थ्य अच्छा रहती है।
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