Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 31
________________ अवतरित हुए उसी दिन से हमें समझ लेना चाहिए था कि अब यादवों को कोई नहीं जीत सकता। अरिष्टनेमि उन सब राजाओं के साथ कृष्ण के पास पहुँचे। उन्हें देखते ही श्री कृष्ण रथ से कूद पडे और अरिष्टनेमि का प्रगाढ आलिंगन करने लगे। अरिष्टनेमि के कहने पर श्रीकृष्ण ने उन सब राजाओं के राज्य उन्हें वापस दे दिये। कुमार अरिष्टनेमि अद्वितीय शक्तिशाली थे : एक दिन वे यादव कुमारों के साथ - साथ घूमते - घूमते वासुदेव श्री कृष्ण की आयुधशाला में पहुँच गये, वहाँ वृहदाकार वाले पांचजन्य शंख को देखा। वे उसे उठाने लगे तब आयुधशाला रक्षक ने प्रणाम कर कहा - यद्यपि आप श्री कृष्ण के भ्राता हैं और प्रबल पराक्रमी भी हैं, पर इस शंख को बजाना तो दूर इसे उठा पाना भी आपके लिए संभव नहीं है। इसको तो केवल श्रीकृष्ण ही उठा और बजा सकते हैं। अतः आप व्यर्थ ही इसे उठाने का प्रयास न करें। रक्षक पुरुष की बात सुनकर कुमार अरिष्टनेमि ने बड़ी सरलता से शंख को उठाया और अधर - पल्लवों के पास ले जाकर बजा दिया। दिव्य शंखध्वनि से द्वारकापुरी गुंज उठी। श्री कृष्ण साश्चर्य सोचने लगे - इस प्रकार इतने अपरिमित वेग से शंख बजाने वाला कौन हो सकता है ? क्या कोई चक्रवर्ती प्रकट हो गया है या इन्द्र पृथ्वी पर आया है ? थोडी ही देर में आयुधशाला के रक्षक ने आकर कृष्ण से निवेदन किया - हे देव ! कुतूहलवश कुमार अरिष्टनेमि ने आयुधशाला में पांचजन्य शंख बजाया है। श्रीकृष्ण को उसका अपरिमित बल देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। श्री कृष्ण ने अरिष्टनेमि से कहा - अब तक मेरी यह धारणा थी कि मेरे सिवाय इस शंख को और कोई नहीं बजा सकता, किंतु मुझे प्रसन्नता है कि मेरे छोटे भाई ने इस शंख को बजाया है। मैं चाहता हूँ कि आयुधशाला में चलकर हम दोनों भाई परीक्षा कर लें कि किसमें कितना अधिक बाहु - बल है। अरिष्टनेमि ने मुस्कराकर कहा - " भैया ! जैसी आपकी इच्छा ।' श्रीकष्ण ने अपनी विशाल दाहिनी भुजा फैलाकर कहा - "कुमार ! देखें क्या आप इसे झुका सकते हैं ?'' कुमार अरिष्टनेमि ने कहा - "हाँ" और सहज ही झुमकर उसे एकदम झुका दिया। फिर अरिष्टनेमि ने अपनी भुजा फैलाई और श्रीकृष्ण उस पर झूमने लगे। वासुदेव श्रीकृष्ण ने दोनों हाथों से पुरा बल लगाकर झुकाने की चेष्टा की, परंतु नेमिकुमार का प्रचण्ड भुजदण्ड झुक नहीं सका। ___ * विवाह और वैराग्य * अपने लघु भ्राता का अद्वितीय बल पराक्रम देखकर वासुदेव श्रीकृष्ण अत्यंत हर्ष - विभोर हो गये । एक बार उनके मन में आया - यह अवश्य ही षट्खण्ड चक्रवर्ती सम्राट बनेगा, परंतु फिर वे उनकी विरक्ति और आजीवन ब्रह्मचारी रहने की भावना जानकर खिन्न हो गये। श्री कृष्ण ने सोचा किसी प्रकार इसे विवाह के लिए सहमत करना चाहिए। विवाह के बंधन में बंधते ही भोगों के प्रति इसकी अनुरक्ति बढेगी और फिर यह संयम की बात भूल जाएगा। श्री कृष्ण की इस योजना को सफल बनाने की जिम्मेदारी सत्यभामा आदि रानीयों ने ली। ००००००००००००००००००००। ............ 3 0 001 A . . Jan Education inte matronal AAAAAAA-25000 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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