Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 49
________________ CALKARN जज माहय, इस व्यक्ति ने किमी की हत्या नहीं की। T दूषित भावों से अपने क्षमा, नम्रता, सरलता, संतोष आदि गुणों का अतिपात होना, घात होना स्व प्राणातिपात है। विषय कषाय के सेवन में अपनी इन्द्रियों की प्राणशक्ति का ह्रास होना द्रव्य स्व प्राणातिपात है। * पर प्राणातिपात भी दो प्रकार का है। अपने क्रूरता, कठोरता, निर्दयता आदि दुर्व्यवहार से दूसरों के हृदय को आघात लगना, उनमें शत्रुता, द्वेष, संघर्ष का भाव पैदा हाना पर भाव - प्राणातिपात है। दूसरों के शरीर, इन्द्रिय आदि प्राणों का हनन करना पर द्रव्य - प्राणातिपात है। 2. मृषावाद :- मृषा+वाद = मृषावाद - मृषा अर्थात् असत्य । वाद अर्थात् कथन, असत्य कथन करना। जो बात जैसी देखी है, सुनी है व जानते है उसे उसी रूप में न कहकर विपरीत रूप में या अन्य रूप में ठमाझी कहना मृषावाद है। धरोहर व गिरवी की वस्तु हड़प जाना, कूट साक्षी देना, मृषा उपदेश देना, उत्तेजनात्मक भाषण देना, जनता को ठगना, हानिकारक वस्तु को गुण युक्त लाभकारी वस्तु कहकर बेचना, नाप तोल में झूठ बोलना, झूठे विज्ञापन देना, वादे से मुकर जाना, स्वार्थ के लिए अपने वचन को पलट देना आदि मिथ्या भाव आना भी मृषावाद है। ____ भाषा सत्य हो, हितकारी हो, प्रिय हो और मधुर हो। किसी के प्राणों पर संकट आता हो तो उस समय साधक को सत्य वचन भी उच्चारित नहीं करना चाहिए। हिंसा का निमित्त बने, ऐसा सत्य भी सत्य नहीं कहा गया। मेतार्य मुनि ने क्रौंच पक्षी को स्वर्णमय कन चुगते हुए देख लिया था। किंतु सुनार के पूछने पर वे मौन रहे। सुनार ने क्रुद्ध होकर मेतार्य मुनि को गीले चमडे से बाँधकर धूप में बैठा दिया - नसे, हड्डियाँ आदि चमडे के सूखने के साथ चरमराने लगी। अपने प्राण विसर्जित कर दिये पर क्रौंच पक्षी के प्राणों पर करुणा कर मुनि ने मुँह नहीं खोला। धन्य मुनिराज!!... ___3. अदत्तादान :- अ+दत्त+आदान = अदत्तादान - बिना दिया हुआ लेना, वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना वस्तु ग्रहण करना अदत्तादान है। परायी स्त्री, वस्तु, भूमि, धन आदि का अपहरण करना, बिना पूछे लेना, डरा धमकाकर लूटना, अन्याय, अनीति से द्रव्य उपार्जन करना, अच्छी वस्तु दिखाकर बुरी वस्तु देना, वस्तु जबर्दस्ती साम में मिलावट करना, पुरस्कार का लोभ In गहने आदि देकर फंसाना आदि चोरी के अनेक वस्तु छीन ले रुप हैं। ___ जब आसक्ति तीव्र हो, लोभ या इच्छा प्रबल हो, तब चोरी जैसा कुकृत्य होता है। पैर में काँटा चुभ जाने पर या हाथ की अंगुली कट जाने पर जैसे प्रतिसमय वेदना होता है वैसे ही ......1431 .0000000. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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