Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 57
________________ आभूषण इकटठे कर लिये। वाह! देव नकली वसीयत तयार हो गयी। 8 मायाप्रत्यया क्रिया 6. आरंभिकी क्रिया | 6. आरंभिकी क्रिया :- खेती, घर आदि आरंभ - समारंभ (जिसमें हिंसा अधिक हो) करने से जो क्रिया लगे वह देखो. मने कितने रूपये और 7. परिग्रहिकी क्रिया आरंभिकी क्रिया है। 7. परिग्रहिकी क्रिया :- धन, कन्या आदि पदार्थों के प्रति आसक्ति या ममत्व भाव रखने से जो क्रिया लगती है, वह परिग्रहिकी क्रिया कहलाती है। 8. मायाप्रत्ययिकी क्रिया :- छल कपट करके दूसरों को ठगने से, कष्ट देने से जो क्रिया लगे, वह माया प्रत्ययिकी क्रिया है। वासुदेव 9. अप्रत्याख्यान प्रत्यया क्रिया :- व्रत - नियम, त्याग, प्रत्याख्यान का विरति न 9. अप्रत्याख्यानप्रत्यया क्रिया करने से अर्थात् संयम का घात करनेवाली पापक्रियाओं का त्याग न करना अप्रत्याख्यान प्रत्यया क्रिया कहलाती है। 10. मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया :अन्य धर्म की जिनवचन पर अश्रद्धा तथा विपरीत मार्ग के इच्छा काक्षा प्रति श्रद्धान करने से जो क्रिया लगे वह अन्य दर्शनीयों का परिचय-प्रशंसा मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया है। 11. दृष्टिका क्रिया :- राग के साथ किसी वस्तु मिथ्यादर्शन प्रत्ययिकी क्रिया या दृश्यों को देखने से जो क्रिया लगती है, वह Z11 दृष्टिका क्रियादृष्टि का क्रिया है। वाह ! यह फूल कितने मुलायम है आर इनकी सुगंध 12. स्पृष्टि (स्पर्शन) क्रिया : राग भाव । कितनी अच्छी है। से किसी सजीव - निर्जीव वस्तु को स्पर्श करने से जो क्रिया लगे वह स्पृष्टिका क्रिया है। 13. प्रातीत्यिकी क्रिया 13. प्रातीत्यिका क्रिया :- जीव और 12. स्पर्शन क्रिया अजीव रुप बाह्य वस्तु के निमित्त से जो (अजीव प्रातीत्यिकी राग - द्वेष की उत्पत्ति होती है उससे लगनेवाली क्रिया प्रातीत्यिकी क्रिया कहलाती है। देखो कितनी सुन्दर लड़की है। आह! इस दुष्ट पत्थर को यहीं पडा रहना था। PRAANM51| For Personal & Private Use Only Jain Education International www.janelibrary.org

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