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* अजीव क्रिया के दो भेद हैं। 1. ईर्यापथिक क्रिया 2. साम्परायिकी क्रिया 1. ईर्यापथिक क्रिया :- उपशांत कषायी (11वें गुणस्थान वाले जीव) क्षीण कषायी (12वें गुणस्थान वाले जीव) तथा सयोगी केवली (13वें गुणस्थान वाले जीव) के योग के निमित्त से होनेवाली क्रिया ईर्यापथिक क्रिया कहलाती है। 2. साम्परायिकी क्रिया :- जो क्रिया कषाय सहित होती है वह साम्परायिकी क्रिया कहलाती है। अर्थात् प्रथम गुणस्थान से लेकर दसवें गुणस्थान वाले सकषायी जीवों की क्रिया को साम्परायिकी कहते हैं। ईर्यापथिक क्रिया एक ही प्रकार की तथा साम्परायिक क्रिया 24 प्रकार की मानी गयी है इस प्रकार स्थानांग सूत्र, तत्वार्थ सूत्र, नवतत्त्व आदि में पच्चीस प्रकार की क्रियाओं का उल्लेख मिलता है। यद्यपि सूत्रकृतांग तथा उत्तराध्ययन सूत्र में तेरह प्रकार की क्रियाएँ, क्रियास्थान या दण्डस्थान के रुप में निर्दिष्ट है किंतु ये तेरह क्रियाएँ पच्चीस क्रियाओं में समाहित है।
* 25 क्रियाएँ * १६ कायिकी क्रिया
1. कायिकी क्रिया :- अशुभ भावों के साथ की जानेवाली शारीरिक क्रिया या चेष्टा कायिकी क्रिया कहलाती है। अर्थात् बिना देखे बिना प्रमार्जना किये बैठने, सोने से, काया द्वारा जो क्रिया लगे। 2. अधिकरणकी क्रिया :- हिंसक L उपकरण जैसे चाकू, छूरी, तलवार, बंदुक, कुल्हाडी आदि संग्रह से जो क्रिया लगे वह अधिकरणिकी क्रिया है। 3. प्राद्वेषिकी क्रिया :- जीव, अजीव
2. आधिकरणिकी क्रिया पर द्वेष या ईर्ष्या के वंशीभूत जो क्रिया की जाती है, वह प्राद्वेषिकी क्रिया कहलाती है।
4. पारितापनिकी क्रिया :- अपने 4. पारितापनिकी क्रिया बालक पर द्वेष करती स्त्री
आपको तथा अन्य को क्रोध वगैरह द्वारा
परिताप पीडा पहुँचाने से जो क्रिया लगे 5. प्राणातिपातिकी क्रिया वह पारितापनिकी क्रिया कहलाती है।
5. प्राणातिपातिकी क्रिया :- जीवों की हिंसा या घात करनेवाली क्रिया प्राणातिपातिकी क्रिया कहलाती है।
3. प्राद्वेषिकी क्रिया
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