Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 48
________________ A AAAAAAKAS रोहिय घोर को भगवान का वचन सुनाई देता Alella JOS SAMAAAAAAAAनत aniliota अशुभ का अनुभव करके सद्धर्म का आचरण करता हुए आगामी भव के लिए शुभ अनुभाव की भूमिका तैयार करता है, वह पुण्यानुबंधी पाप कहा जाता है। शार3 पुण्यानुबं रोहिणीया चोर एक बार चोरी करने जाते हुए भगवान महावीर के समवसरण के पास से निकला। भगवान के वचन कानों में नहीं पडे इसलिए कानों में अंगुली डाल ली। पिता की सीख थी कि महावीर की वाणी कभी मत सुनना। उसी समय पाँव में काँटा चुभ गया। काँटा निकालने के लिए हाथ कानों से हटाने पडे और उस समय भगवान की वाणी कानों में पडी। जिसमें देवताओं की पहचान बताई जा रही थी। भगवान की वाणी भूलने की कोशिश की, परंतु वह तो और पक्की याद हो गयी। एक समय अभयकुमार ने बडी योजनापूर्वक उसे पकड लिया। कृत्रिम री पाप रोहिणेय चोर की दीक्षा देवलोक जैसे वातावरण में उसे रखा ताकि वह अपने को स्वर्ग में उत्पन्न समझकर पूर्वजन्म में किये पुण्य-पाप का लेखा-जोखा बता दे। भगवान के वचनानुसार रोहिणिया जान गया कि यह अप्सराएँ जैसी नारियाँ देवी नहीं हो सकती। जरुर कोई धोखा है। वह बच गया। फिर उसे भगवान महावीर के वचनों पर दृढ विश्वास हुआ और उसने भगवान के पास दीक्षा लेकर आत्म-कल्याण किया। पाप भोगते हुए भी उसने पुण्य का बंध कर लिया। * पाप के 18 प्रकार : पाप के कारण भी अनेक है, तथापि संक्षेप में पाप उपार्जन के अठारह कारण माने गये हैं, उन्हें पापस्थान भी कहते हैं। उनके नाम इस प्रकार है। 1. प्राणातिपात :- प्राण+अति+पात = प्राणातिपात - प्राण गिराना, प्राण विनष्ट करना। तत्वार्थ सूत्र में कहा गया है :- प्रमत्तयोगात् प्राण व्यपरोपणं हिंसा। अर्थात् प्रमाद और योग से प्राण समाप्त करना हिंसा है। प्राण दस है - पाँच इन्द्रियाँ, मन वचन काया, श्वासोश्वास एवं आयुष्य। इनमें से किसी भी प्राण का हनन करना हिंसा या प्राणातिपात है जैसे मारना, पीटना, कष्ट देना, अपमान करना, कटुवचन बोलना, युद्ध करना, शस्त्रों का निर्माण करना, शक्ति से अधिक श्रम लेना, नकली दवाइयाँ बनाना, प्रसाधन सामग्री के लिए पशु-पक्षियों को पीड़ा पहुँचाना, अत्याचार करना, मध - माँस का आहार करना, हिंसा के व्यवसायों को प्रोत्साहन समर्थन देना आदि सभी उत्पीडक कार्य हिंसा के ही विविध रुप हैं। प्राणातिपात दो प्रकार के हैं :- 1. स्व - प्राणातिपात 2. पर - प्राणातिपात * स्व प्राणातिपात भी द्रव्य और भाव की अपेक्षा से दो प्रकार है, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग - द्वेष आदि वध 42 POOR . Jain Education International . . For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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