Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 47
________________ AAAAAAAAAAAAAAAAAAAA * पाप तत्व * पुण्य का प्रतिपक्षी तत्व पाप है, पाप शब्द की व्युत्पति करते हुए स्थानांग सूत्र की टीका में कहा गया है - ___ पाशयाते गुण्डयत्यात्मान पातयति चात्मनः आनन्दरसं शोषयाते क्षपयतीति पापम् अर्थात् : जो आत्मा को जाल में फंसावे अथवा आत्मा को गिरावे या आत्मा के आनंदरस को सुखावे, जो बांधते समय सुखकारी किंतु भोगते समय दुःखकारी हो वह पाप है। संसार में जो कुछ भी अशुभ है वह सब पाप है। कहा जाता है :- पापयति आत्मानं इति पापम् इस व्युत्पति के अनुसार जिस प्रवृति से आत्मा का पतन हो, हानि हो, अहित हो वह दोष है, वह पाप है। * पाप के दो प्रकार हैं: 1. द्रव्यपाप 2. भाव पाप 1. द्रव्य पाप: जिस कर्म के उदय से जीव दुःख का अनुभव करता है, उसे द्रव्य पाप कहते हैं। 2. भाव पाप : जिस कर्म के उदय से जीव के अशुभ परिणाम हो, उसे भाव पाप कहते हैं। * पाप के अन्य दो भेद : 1. पापानुबंधी पाप 2. पुण्यानुबंधी पाप 1. पापानुबंधी पाप :- जिस पाप को भोगते समय नया पाप बँधता है वह पापानुबंधी पाप है, जैसे कसाई, मच्छीमार आदि पूर्वभव में पाप किये जिससे इस भव में दरिद्रता आदि कष्ट उन्हें प्राप्त हो रहे है और इस पाप को भोगते समय नवीन पापों का बंध कर रहे हैं । अतः वह पापानुबंधी पाप है। जैसे कोई मनुष्य अपने अशुभ घर से निकलकर उससे भी अधिक अशुभ घर में प्रवेश करता है, उसी तरह काल सौकरिक कसाई निब्य जो व्यक्ति अपने वर्तमान अशुभ भव में महापाप कर्म का आचरण करके नरकादि भव में जाता है तो वह पापानुबंधी पाप का परिणाम है। कालसौकरिक कसाई पूर्वजन्मों के घोर पापों के फलस्वरुप कसाई कुल में उत्पन्न हुआ । रोज 500 भैंसे मारकर अपना धंधा करता था। राजा श्रेणिक ने उससे हिंसा छुडाने के लिए कुए में उतार दिया। परंतु कालसौकरिक कुएँ में बैठा - बैठा भी अपने शरीर के पसीने के मैल से भैंसे बनाकर मारता रहा। 1. पुण्यानुबंधी पाप :- जिस पाप को भोगते समय नवीन पुण्योपार्जन होता है उसे पुण्यानुबंधी पाप कहते है। जो जीव पूर्वभव में किये हुए पाप के कारण इस समय दरिद्रता आदि का दुःख भोग रहे हैं, किंतु सत्संग आदि के कारण विवेक पूर्वक कार्य करके पुण्योपार्जन करते है वे पुण्यानुबंधी पाप वाले कहलाते हैं। __ जैसे कोई व्यक्ति अशुभ घर से निकलकर शुभ घर में प्रवेश करता है उसी तरह जो जीव वर्तमान भव में 500 भसी का वध करता था आजुबंधी पाप कुए में भी अपने पसीने के मैल से बनाये मेंसों का वध करता है। 66 intvaliEdidicatiolinintelmiationa 41 ANS.OPersohalebrimaterisedinlyte Sooooooooooo GORAKOOOOOOOOO www.jalintellbiralry.org

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