Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 39
________________ (Time) * काल "वर्तना लक्खणों कालों" वर्तना का अर्थ है परिणमन में निमित्त होना । जो द्रव्यों के परिणमन में निमित्त कारण है। अर्थात् नयों को पुराना और पुराने को नष्ट करे उसे काल कहते हैं। जीव और पुद्गल मे समय समय पर जो जीर्णता उत्पन्न होती है, जो समय समय पर भिन्न भिन्न अवस्थाएँ दिखाई देती है, वह काल द्रव्य की सहायता के बिना नहीं हो सकती । जैसे ':- चावल भात के रुप के, केरी आम के रुप में, बचपन जवानी और बुढापे के रुप में, नई वस्तु पुरानी वस्तु के रुप में ये समस्त प्रक्रियाएँ काल के कारण ही होती है। आयुष्य का मान और छोटेबड़े का व्यवहार काल से ही होता है। * काल के दो विभाग 1. निश्चयकाल :- जिस कारण से द्रव्य में (परिणमण) वर्तना होती हैं। उसे निश्चय काल कहते हैं। 2. व्यवहारकाल :- जिस कारण से जीव और पुद्गल में नया - पुराना, छोटा बडा आदि व्यवहार दिखाई देते हैं उसे व्यवहारकाल कहते हैं। समय अवलिका, घडी, मास, वर्ष आदि समस्त व्यवहार काल के रुप हैं। व्यवहार काल को ढाई द्वीप प्रमाण कहा हैं। मनुष्य क्षेत्र में ही होता है। * द्रव्य से :- अनंत है। ढाई द्वीप प्रमाण निश्चयकाल परिवर्तनशीलता (वर्तना) * क्षेत्र से अलोक व्यापी : Jain Education International व्यवहारकाल : * काल से :- अनादि अनंत है। * भाव से :- अमूर्त है, अचेतन है। * गुण से :- वर्तना गुण । - 33 ****** For Personal & Private Use Only : लोक - १ 21 ५ 4 713 व्यवहार ****** www.jainelibrary.org

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