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लिए झुण्ड के झुण्ड चले आ
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* नामकरण *
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श्री पार्श्व - प्रभु गर्भ में आने के पश्चात् रात के अंधकार में भी महारानी वामादेवी ने अपने पार्श्व से (बगल से) जाते हुए एक सर्प को देखा था । गर्भ का प्रभाव मानकर माता- पिता ने पुत्र का नाम पार्श्व
रखा ।
* विवाह
पार्श्वकुमार युवास्था प्राप्त होने पर कुशस्थलपुर के राजा श्री प्रसेनजित की राज कन्या प्रभावती के साथ विवाह किया।
* नाग का उद्धार
कमठ का नाम सुनते ही कुमार ने जान लिया “ यह
एक दिन पार्श्वकुमार ने देखा कि नगर की जनता पूजा अर्चना की सामग्री लेकर नगर के बाहर जा रही है । पूछने पर पता चला कि कोई कमठ नाम का तापस नगर के बाहर पंचाग्नि तप कर रहा है। उसी को देखने के रहे हैं।
वही कमठ है, और यहाँ पर भी अज्ञान और पाखण्ड फैलाकर धर्म भीरु जनता को हिंसात्मक यज्ञ तथा अज्ञान तप के अंधकार में धकेल रहा है। " कुमार अपने अनुचरों को साथ लेकर तापस की धूनी के पास पहुँचे। लोगों को बडा आश्चर्य हुआ “अहा ! राजकुमार पार्श्व भी तापस के दर्शन के लिए आए हैं?" उनके पीछे भीड जमा हो गई। कुमार तापस के नजदीक पहुँचकर बोले “ हे कमठ तापस! आप यह अज्ञान तप करके स्वयं को व्यर्थ ही कष्ट दे रहे हैं, साथ ही यज्ञ - कुण्ड की लकडियों में पंचेन्द्रिय जीव नाग जल रहा है, उसकी हिंसा भी कर रहे हैं" कुमार की बातें सुनकर तापस आग बबूला हो उठा कुमार ! आप क्या जाने धर्म को, यज्ञ को, तप को ? क्यों व्यर्थ ही आप हमारे यज्ञ और तप में विघ्न डाल रहे हैं ?
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पार्श्वकुमार ने कहा- “धर्म और तप का मूल दया है। आपके यज्ञ - कुण्ड में तो एक नाग - युगल जल रहा है" तापस ने क्रुद्ध होकर कहा
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