Book Title: Jain Dharm Darshan Part 02
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 27
________________ 9849993338 . . IAS * 22वें तीर्थंकर भगवान श्री अरिष्टनेमी के पूर्व भवों का वर्णन * * पहला भव ___ जंबुद्वीप के भरत क्षेत्र में अचलपुर नगर में राजा विक्रमधन राज्य करते थे। उनकी पटरानी धारिणी थी। रानी ने एक रात्री में स्वप्न देखा कि एक पुरुष ने फलों वाले आम वृक्ष को हाथ में लेकर कहा कि यह वृक्ष तुम्हारे आंगन में रोपा जाता है। जैसे जैसे समय बीतेगा वैसे ही वैसे यह अधिक फल देने वाला होगा और भिन्न भिन्न नौ स्थानों पर जगह रोपा जाएगा। सवेरे शय्या छोडकर रानी उठी और नित्य कृत्यों से निवृत हो उसने स्वप्न का फल राजा से पूछा। राजा ने शीघ्र ही स्वप्न निमितिक को बुलाकर स्वप्न का फल कहने की आज्ञा दी, उसने कहा - " हे राजन् ! तुम्हारा पुत्र अधिक गुणवान होगा। और नौ बार वृक्ष रोपा जायेगा इसका फल केवली गम्य है।" समय पूर्ण होने पर रानी ने पत्ररत्न को जन्म दिया पत्र का नाम धन रखा गया। यवा होने पर धनकुमार का विवाह कुसुमपुर नरेश सिंह की पुत्री राजकुमारी धनवती के साथ हुआ। एक दिन दोनों जल क्रीडा के लिए एक सरोवर में गये। वहाँ उन्होंने एक स्थान पर एक मुनिराज को मुर्छित हुए देखा। अनेक शीतोपचार कर उन्होंने उनकी मूर्छा दूर की। निर्दोष आहार पानी औषधि आदि से उन्होंने मुनि की सेवा भक्ति की। मुनि के उपदेश से उन्होंने सम्यक्त्व सहित श्रावक व्रत को स्वीकार किया। धनकुमार और धनवती रानी ने चिरकाल तक संसार का सुख भोग अपने पुत्र जयंत को राज्य का भार सौंपकर दीक्षा ली और चिरकाल तक मुनिव्रत पाला। * दूसरा भव अनशन सहित आयुपूर्ण कर दोनों सौधर्म देवलोक में देव रुप उत्पन्न हुए। * तीसरा भव ___धनकुमार का जीव वहाँ से च्यवकर राजा श्री सुर की रानी विधुन्यमनि के गर्भ से जन्मा उसका नाम चित्रगति रखा गया। धनवती का जीव राजा अनंत्रसिंह की रानी शशिप्रभा के गर्भ से पुत्री रुप में जन्मी। उसका नाम रत्नावती रखा गया। कालांतर में उसका विवाह चित्रगति के साथ हुआ। श्री सुर राजा ने अपने पुत्र चित्रगति को राज्य देकर दीक्षा ले ली। चित्रगति न्याय से राज्य करने लगा। एक बार उसके आधीन एक राजा मर गया। उसके दो पुत्र थे। वे दोनों राज्य के लिए लडने लगे। चित्रगति ने उनको समझाकर शांत किया। कुछ दिन बाद उसने सुना कि दोनों भाई एक दिन आपस में लडकर मर गये। इस समाचार से उसे संसार से वैराग्य हो गया और उसने पुरंदर नामक पुत्र को राज्य सौंपकर, पत्नी रत्नावती और अनुज बंधु मनोगति और चपलगति के साथ श्री दमधर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की। * चौथा भव ध्यान साधना करते हुए चित्रगति चौथे महेन्द्र देवलोक में महर्द्धिक देव बना। उनके दोनो भाई एवं पत्नी उसी देवलोक में देव बने। * पाँचवा भव पूर्व महाविदेह की पद्म विजय के सिंहपुर नाम का राजा हरिनंदी था। उसकी रानी प्रियदर्शना थी। 21 Jain Education International For Personal & Private Use Only ___www.jainelibrary.org

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