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हरीतक्यादिवर्गः ।
१७
टीका - अब सोंफ और सोया दोनोंके नाम और गुण क्रमसें लिखते हैं. शतपुष्पा, शताहा, मधुरा, कारवी, मिसि ॥ ८९ ॥ अतिलम्बी, सितछत्रा, संहिता, छत्रिका, यह सोंफ के नव नाम हैं. अब सोआके नाम कहे हैं. छत्रा, शालेय, शालीन, मिश्रेया, मधुरा, मिसि, ये छ नाम सेआके हैं ॥ ९० ॥ सौंफ है सो हलकी है, तीखी है, पित्तकों करनेवाली है, और दीपन तथा कडवी है. उष्णज्वर, वात, कफ, व्रण, शूल, और नेत्ररोग इनकों हरनेवाली है ॥ ९१ ॥ और सोआमेंभी ऐसेही गुण जानों. विशेषकरिके योनिशूलके नाश करनेवाला है.
अग्निमान्धहरी या बद्धविट् रुमिशुक्रहृत् ॥ ९२ ॥ रूक्षोष्णा पाचनी कासवमिश्लेष्मानिलान् हरेत् ।
टीका - मंदाग्निकों नाश करनेवाली, तथा हृदयके रोगोंकों हरनेवाली, कविजियतकों हरनेवाली, तथा कृमि और शुक्र इनकों हरनेवाली है रूखी है ॥ ९२ ॥ उष्ण है, पाचन है, कासरोगकों, कमनकों, तथा कफवातकों, हरनेवाली है.
मेथीवनमेथी नामगुणाः.
मेथिका मिथिनी मेथिर्दीपनी बहुपत्रिका ॥ ९३ ॥ बोधनी बहुवीजा च जातिगन्धफला तथा । वल्लरी कामथा मिश्रा मिश्रपुष्पा च कैरवी ॥ ९४॥ कुंचिका बहुपर्णी च पित्तजित् वायुनुत् द्विधा । मेथिका वातशमनी श्लेष्मनी ज्वरनाशिनी ॥ ९५ ॥ ततः स्वल्पगुणा बल्या वाजिनां सा तु पूजिता ।
टीका - मेथिका, मिथिनी, मेथी, दीपनी, बहुपत्रिका ॥ ९३ ॥ बोधनी, बहुबीजा, जातिगन्धफला, विल्लरी, कामथा, यह ११ मेथीके नाम हैं. अब इसके उपरांत वनमेथीके नाम लिखे हैं. मिश्रपुष्पा, कैरवी ॥ ९४ ॥ कुंचिका, बहुपणीं, पित्तजित, वायु ये दोप्रकारकी वनमेथी होती है. फिर ये मेथी बातके रोगोंकों हरनेवाली, कफरोगोंका नाश करनेवाली, तथा ज्वरकों हरनेवाली, होती है ॥ ९५ ॥ और थोडे गुणवाली, बलकों देनेवाली, तथा घोडोंकोंभी वोह अच्छी होती है.
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